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पहला प्रश्न:
पतंजलि कहते हैं 'जीवन से चिपको मत: और यह बात आसान है समझने के लिए और अनुसरण करने के लिए। लेकिन वे यह भी कहते हैं कि 'जीवन के प्रति लालायित मत होओ 'क्या हमें वर्तमान में आनंदित नहीं होना है उस सबसे जो प्रकृति के पास है हमें देने को भोजन प्रेम सौदर्य कामवासना आदिर और यदि यह ऐसा है तो क्या यह जीवन का लोभ नहीं है?
पतंजलि कहते हैं कि जीवन का लोभ एक बाधा है, जीवन का आनंद मनाने में एक बाधा है,
सचमुच जीवंत रहने में एक बाधा है, क्योंकि लोभ सदा भविष्य के लिए होता है, वह वर्तमान के लिए कभी नहीं होता। वे आनंद मनाने के विरोध में नहीं हैं। जब तुम किसी चीज से आनंदित हुए क्षण मात्र में उपस्थित होते हो, तो उसमें कोई लोभ नहीं होता। लोभ है भविष्य के लिए ललकना, और इस बात को समझ लेना है।
वे लोग जो अपने जीवन से वर्तमान में आनंदित नहीं होते, उन्हें कहीं भविष्य में जीवन के लिए लालसा होती है। जीवन के लिए लालसा सदा भविष्य में ही होती है। यह बात एक स्थगन है। वे कह रहे होते हैं कि 'हम आज आनंद नहीं मना सकते, इसलिए हम आनंद मनाएंगे कल।' वे कह रहे होते हैं, 'बिलकुल इसी क्षण हम उत्सव नहीं मना सकते, इसलिए कल को आने दो ताकि हम उत्सव मना सकें।' भविष्य उदित होता है तुम्हारे दुख में से, तुम्हारे उत्सव में से नहीं। एक सच्चे उत्सवमय व्यक्ति के पास कोई भविष्य नहीं होता है, वह इसी क्षण में जीता है, वह इसे समग्र रूप से जीता है। उस समग्र रूप से जीए जाने में से ही उदित होता है अगला क्षण, लेकिन ऐसा किसी लालसा के कारण नहीं होता है। निस्संदेह, जब उत्सव में से अगला क्षण जन्मता है, तो उसमें ज्यादा क्षमता होती है तुम्हें आशीष देने की। जब उत्सव में से भविष्य जन्मता है, तो वह और - और ज्यादा समृद्ध होता जाता है। एक घड़ी आती है जब क्षण इतना समग्र हो जाता है, इतना संपूर्ण कि समय पूरी तरह तिरोहित हो जाता है।
समय दुखी मन की जरूरत है। समय सर्जना है दुख की। यदि तुम प्रसन्न होते हो तो कहीं कोई समय नहीं बचता-समय तिरोहित हो जाता है।
इसे दूसरे आयाम से देखना। क्या तुमने ध्यान दिया कि जब कभी तुम दुखी होते हो, समय बहुत धीमी गति से सरकता है। कोई मर रहा होता है, कोई जिसे तुम प्रेम करते हो, कोई जिसके लिए तुम