Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 02
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 320
________________ यह एक मजे की बात है, सार्च का जीए चला जाना। उसे तो बहुत-बहुत पहले आत्महत्या कर लेनी चाहिए थी, क्योंकि उसने सचमुच ही जान लिया था कि जीवन अर्थहीन है, तो फिर बात ही क्या बची? या तो उसने ऐसा जान लिया या वह अब भी आशा रख रहा है इसके विरुद्ध और इसे नहीं जान पाया। सारी बात को हर रोज फिर –फिर किए चले जाने में, रोज बिस्तर से उठने में सार क्या है? यदि तुमने सचमुच ही अनुभव कर लिया है कि जीवन अर्थहीन है, तो कैसे तुम बिस्तर से उठ सकते हो अगली सुबह, किसलिए? उसी पुरानी नासमझी को फिर से दोहराने के लिए? -अर्थहीन बात, तुम्हें सांस ही क्यों लेनी चाहिए? यह मेरी समझ है यदि तुमने सचमुच ही जान लिया हो कि जीवन अर्थहीन है, तो सांस तुरंत ठहर जाएगी। सार क्या है? तुम दिलचस्पी खो दोगे सांस लेने में, तुम कोई प्रयास न करोगे। लेकिन सार्च तो जीए ही चला जाता है और लाखों चीजें करता रहता है! अर्थहीनता सचमुच बहुत गहरे में नहीं उतरी है। वह एक फिलासफी है, जीवन अभी भी नहीं है, भीतर की एक आंतरिक घटना अभी भी नहीं है, मात्र एक फिलासफी ही है। वरना, पूरब तो खुला है; सार्च क्यों न आए? पूरब कहता है, 'ही, जीवन अर्थहीन है, लेकिन तब द्वार खुलता है। तो उसे आने दो पूरब में और द्वार का पता लगाने की कोशिश करने दो। और यही नहीं कि किसी ने केवल ऐसा कहा ही है। करीब दस हजार वर्षों से बहतों ने इस साक्षात्कार किया है, और तुम इस बारे में स्वयं को बहका नहीं सकते। बुद्ध एक भी दुखी क्षण के बिना आनंदमग्न जीए चालीस वर्ष। कैसे तुम दिखावा कर सकते हो? कैसे तुम चालीस वर्ष जिंदगी जी सकते हो ऐसा अभिनय करते हुए जैसे कि तुम आनंदमग्न हो? और अभिनय करने में सार क्या है? और केवल बुध एक नहीं -हजारों बदध उत्पन्न हए हैं पूरब में, और उन्होंने सर्वाधिक आनंदमय जीवन जीए, जहां दुख की एक लहर न उठी। जो पतंजलि कह रहे हैं, वह कोई दर्शन शास्त्र नहीं, वह एक जाना हुआ सत्य है, वह एक अनुभव है। सात्र पर्याप्त रूप से साहसी नहीं, अन्यथा तो दो विकल्प होते : या तो आत्महत्या कर लो, अपने दर्शन के प्रति सच्चे बनो, या मार्ग खोजो जीवन का, नए जीवन का; दोनों ढंग से तुम पुराने को छोड़ देते हो। इसीलिए मैं जोर देता हूं कि जब कभी कोई आदमी आत्महत्या की स्थिति तक पहुंचता है, केवल तभी द्वार खुलता है। तब दो ही विकल्प होते हैं; आत्मघात या आत्मरूपांतरण। सार्च .साहसी नहीं। वह बात करता है साहस की, प्रामाणिकता की, लेकिन इनमें से बात है कुछ नहीं। यदि तुम प्रामाणिक हो, तो फिर या तो आत्महत्या कर लो या कोई रास्ता खोजो दुख में से निकलने का 1 यदि तुम्हारा दुख अंतिम और समग्र होता है, तो फिर क्यों तुम जीते रहते हो? तब तो तुम्हारे दर्शन के प्रति सच्चे बने रहना। ऐसा जान पड़ता है कि यह निराशा, व्यथा, अर्थहीनता भी शाब्दिक है, तार्किक है, लेकिन अस्तित्वगत नहीं। मेरा यह जानना है कि पश्चिम का अस्तित्ववाद वास्तव में अस्तित्ववादी नहीं है, वह फिर एक विचार ही है। अस्तित्ववादी होने का अर्थ होता है कि अनभति होनी चाहिए, विचार नहीं। सात्र एक बड़ा

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