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हो। यदि तुम प्रेम करते हो, तुम कामवासना में उतरते हो, तो आनंद मनाना उसका। अपराधी मत अनुभव करना, और पापी मत अनुभव करना। ठीक से पाप कर लेना। यदि तुम पाप कर ही रहे हो तो कम से कम कुशल तो होओ।
मुझे याद आ गई लूथर की। पेक्का फॉर्टीलर नामक एक शिष्य ने पूछा लूथर से, 'क्या करूं? मैं पाप करना बंद नहीं कर सकता।' लूथर ने कहा, 'ज्यादा शक्तिशाली पाप करो।' बिलकुल ठीक ही है बात। मैंने लूथर के विचारों के साथ कभी कोई बहुत ज्यादा सहानुभूति अनुभव नहीं की, लेकिन इस बारे में बिलकुल उसके साथ हूं अधिक सशक्त, अधिक समर्थ पाप करो। यदि तुम रुक नहीं सकते तो फिर क्यों करनी चिंता? अधिक सशक्त पाप करो, क्योंकि चरम पर रूपांतरण संभव होता है। कुनकुने लोग कभी रूपांतरित नहीं होते।
कुनकुने मत होना। मूढ़ता केवल यही है जिसे तुम किए चले जा सकते हो। क्योंकि जब तुम सौ प्रतिशत उबल रहे होते हो केवल तभी वाष्पीकरण घटता है। कुनकुने होते हो, तो तुम बने रह सकते हो कुनकुने बहुत-बहुत जन्मों तक और कुछ नहीं घटेगा। चरम की ओर बढ़ जाना। यदि तुम कामवासना में उतरते हो तो उसमें सरक जाना समग्र रूप से। कोई संघर्ष मत बना लेना, कोई चीज रोक मत लेना और इसी बीच कार्य किए जाना। कामवासना को वहां अपने से मौजूद रहने दो। तुम काम करते जाओ जागरूकता पर। और ज्यादा-ज्यादा ध्यान करो और धीरे - धीरे तुम जानोगे कि वही ऊर्जा बदल रही है, रूपांतरित हो रही है।
जब तुम बदलते हो, तो ऊर्जा बदलती है, क्योंकि ऊर्जा का संबंध तुमसे है। जब तुम्हारा दृष्टिकोण बदलता है, तो ऊर्जा को बदलना पड़ता है उसका तल। जब तुम्हारी अंतस-सत्ता का धरातल बदलता है, तब ऊर्जा को तुम्हारा अनुसरण करना पड़ता है। वह तुम्हारी ऊर्जा है।
जब तुम केंद्र की ओर बढ़ते हो, धीरे – धीरे तुम अचानक जान लोगे कि कामवासना तिरोहित हो रही है और प्रेम शक्ति पा रहा है। तुम और ज्यादा प्रेममय हो रहे हो। अब प्रेम कोई कामुकता नहीं। प्रेम अग्नि की भांति नहीं होता, वह बहत शीतल प्रकाश होता है। कामवासना ज्वलंत होती है, वह आग होती है। वह तपे हुए सूर्य की भांति होती है। प्रेम शीतल चंद्रमा की भांति होता है; वह तुम्हें प्रकाश देता है, लेकिन बहुत शीतल, शात। एक शाति घेर लेती है प्रेम को। फिर धीरे – धीरे कामवासना हो जाएगी दूर, और दूर, और दूर और वही ऊर्जा सरक रही होगी प्रेम में। तुम भूखा अनुभव नहीं करोगे। बल्कि, इसके विपरीत तम ज्यादा परितृप्त अनभव करोगे, क्योंकि प्रेम ज्यादा परितृप्त करता है। वह कामवासना का उच्चतर रूप है, और हर बार जब तुम ज्यादा ऊंचे जाते हो, तुम ज्यादा परितृप्त अनुभव करते हो क्योंकि उच्चतर रूप ज्यादा सूक्ष्म ऊर्जाएं हैं। वे स्थूल नहीं होती, वे ज्यादा सूक्ष्म होती हैं। वे परिपूर्ति करती हैं, वे तुम्हें और ज्यादा देती हैं। तो उठते जाना जागरूकता में। एक दिन आता है, जब अचानक तुम केंद्र में बद्धमूल होते हो -केंद्रस्थ। अब प्रेम भी नए आयाम धारण कर लेता है; वह बन जाता है करुणा।