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मनुष्य वर्तमान में रहता दिखाई पड़ता है, लेकिन वह बात केवल एक प्रतीति ही है। मनुष्य जीता है
अतीत में। वर्तमान में से वह गुजरता है, लेकिन वह बद्धमूल रहता है अतीत में। वर्तमान वास्तविक समय नहीं है सामान्य चेतना के लिए। सामान्य चेतना के लिए तो अतीत है वास्तविक समय, वर्तमान तो केवल एक रास्ता है अतीत से भविष्य तक जाने तक का, मात्र एक क्षणिक मार्ग। अतीत वास्तविक हो जाता है और भविष्य भी, लेकिन वर्तमान अवास्तविक होता है सामान्य चेतना के लिए। भविष्य और कुछ नहीं है सिवाय अतीत के फैलाव के भविष्य कुछ नहीं है सिवाय अतीत के फिर फिर प्रक्षेपित होने के
वर्तमान का अस्तित्व नहीं जान पड़ता है यदि तुम सोचते हो वर्तमान के बारे में, तो तुम उसे पाओगे ही नहीं बिलकुल। क्योंकि जिस क्षण तुम पाते हो उसे, वह पहले से ही गुजर गया होता है। जब तुमने पाया नहीं था उसे, तो जरा उससे एक क्षण पहले ही, वह चला गया भविष्य में। बुद्ध की चेतना के लिए, जागे हुए व्यक्ति के लिए वर्तमान का अस्तित्व होता है। सामान्य चेतना के लिए, न जागे हुए, निद्राचारी जैसे सोए हुए के लिए अतीत और भविष्य सत्य होते हैं, वर्तमान असत्य होता है। जब कोई जाग जाता है तो वर्तमान ही सत्य होता है; अतीत और भविष्य दोनों असत्य बन जाते हैं।
ऐसा क्यों होता है? तुम क्यों जीते हो अतीत में? क्योंकि मन और कुछ नहीं है सिवाय अतीत के संग्रह के मन स्मृति है वह सब जो तुमने किया है, वह सब जिसका स्वप्न तुमने देखा है, वह सब जो तुम करना चाहते थे और कर न सके, वह सब जिसकी तुमने कल्पना की अतीत में वह सब तुम्हारा मन है। मन एक मृत तत्व है यदि तुम देखते हो मन के द्वारा, तो तुम कभी न पाओगे वर्तमान को, क्योंकि वर्तमान है जीवन और जीवन तक कभी नहीं पहुंचा जा सकता है मृत माध्यम के द्वारा जीवन तक कभी नहीं पहुंचा जा सकता है मरे हुए साधनों द्वारा जीवन को नहीं छुआ जा सकता है मृत्यु द्वारा।
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मन मरी हुई चीज है। मन है दर्पण पर एकत्रित हुई धूल की भांति ही जितनी ज्यादा धूल इकट्ठी होती है, उतना ही दर्पण दर्पण जैसा कम होता है और यदि धूल की पर्त बहुत मोटी होती है जैसी कि वह तुम पर जमी है, तब दर्पण में प्रतिबिंब बिलकुल ही नहीं पड़ता ।
हर कोई इकट्ठी कर लेता है धूल न केवल तुम उसे इकट्ठा करते, तुम चिपकते भी हो उससे तुम सोचते हो कि वह कोई खजाना है। अतीत जा चुका होता है; तो क्यों तुम चिपकते हो उससे ? तुम कुछ नहीं कर सकते उस बारे में। तुम पीछे नहीं लौट सकते। तुम उसे अनकिया नहीं कर सकते। क्यों चिपकते हो तुम उससे? वह कोई खजाना नहीं है। और यदि तुम चिपकते हो अतीत से और तुम सोचते हो कि वह खजाना है, तो निस्संदेह तुम्हारा मन उसे फिर भविष्य और कुछ नहीं हो सकता है सिवाय तुम्हारे परिवर्तित अतीत के
फिर जीना चाहेगा भविष्य में।
जो थोड़ा परिष्कृत होता है,