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थोड़ा ज्यादा सजा –संव होता है। लेकिन वह वही होगा क्योंकि मन अज्ञात के बारे में सोच ही नहीं सकता; मन प्रक्षेपित कर सकता है केवल ज्ञात को ही, उसे जिसे तुम जानते हो।
तुम प्रेम में पड़ जाते किसी स्त्री के और वह स्त्री मर जाती है, अब तुम्हें कैसे मिलेगी कोई दूसरी स्त्री? वह दूसरी स्त्री तुम्हारी मृत पत्नी का ही एक परिवर्तित रूप होगी, वही एकमात्र ढंग है जिसे कि तुम जानते हो। भविष्य में जो कुछ भी तुम करो और कुछ नहीं होगा सिवाय अतीत की पुनरावृत्ति के। तुम थोड़ा बदल सकते हो -एक टुकड़ा यहां, एक टुकड़ा वहा, लेकिन मुख्य बात वही रहेगी, एकदम वही। जब मुल्ला नसरुद्दीन पड़ा था अपनी मृत्यु शय्या पर, किसी ने पूछा उससे, 'यदि तुम्हें फिर से जीवन दे दिया जाए तो कैसे तुम जीयोगे उसे, नसरुद्दीन? क्या तुम कोई परिवर्तन करोगे?' नसरुद्दीन ने सोच –विचार किया, आंखें बंद करके सोचता रहा, ध्यान किया, फिर खोली अपनी आंखें और बोला, 'ही, यदि मुझे फिर जीवन दिया जाए, तो मैं अपने बालों के बीच में से निकालूंगा मांग। सदा वही रही है मेरी इच्छा, लेकिन मेरे पिता सदा जोर देते रहे कि मैं ऐसा न करूं। और जब मेरे पिता मरे, तो बाल एक ही दिशा में इतने जम गए थे कि उनके बीच से मांग निकाली न जा सकती थी।'
हंसों मत। यदि तुम में पूछा जाए कि तुम फिर से क्या करोगे तुम्हारे जीवन में तो तुम थोड़े -बहुत परिवर्तन कर लोगे बिलकुल इसी तरह के पति होगा तो जरा -सी अलग नाक वाला, पत्नी होगी तो थोड़े से अलग रूप -रंग की; थोड़ा बड़ा या थोड़ा छोटा घर होगा; लेकिन वे तुम्हारे बालों की मांग बीच में से निकालने से ज्यादा बड़ी बातें नहीं हैं - क्षुद्र, हल्की, महत्वपूर्ण न । तुम्हारा मौलिक जीवन वैसा ही बना रहेगा।
मैं झाकता हूं तुम्हारी आंखों में और मैं देखता हूं यही। तुमने ऐसा किया है बहुत-बहुत बार, तुम्हारा मूलभूत जीवन वैसा ही बना रहा है। बहुत बार तुम्हें मिले हैं जीवन, तुम जीए हो बहुत बार; तुम वहुत ज्यादा प्राचीन हो। तुम नए नहीं इस पृथ्वी पर, तुम पृथ्वी से ज्यादा पुराने हो, क्योंकि तुम दूसरी पृथ्यियों पर भी, दूसरे ग्रहों पर भी जीए हो। तुम उतने ही पुराने हो जितना अस्तित्व। ऐसी ही है यह बात, क्योंकि तुम उसके हिस्से हो। तुम बहुत पुराने हो, लेकिन फिर –फिर वही ढाचा दोहराए जा रहे
हो।
इसलिए हिंदू इसे कहते -चक्र, जीवन और मृत्यु का, 'चक्र' क्योंकि यह स्वयं को दोहराए चला जाता है। यह एक दोहराव है : चक्र के वही आरे ऊपर आते और नीचे जाते, नीचे जाते और ऊपर आते। मन स्वयं का प्रक्षेपण करता है। मन अतीत है, इसलिए तुम्हारा भविष्य, अतीत के अतिरिक्त और कुछ नहीं होने वाला।
और अतीत क्या है? क्या किया है तुमने अतीत में? जो कुछ भी तुमने किया है –अच्छा, बुरा, ऐसा, वैसा–जों तुम करते हो वह अपनी पुनरावृत्ति बना लेता है, यही है कर्म का सिद्धांत। यदि तुम कल से एक दिन पहले क्रोधित हए थे, तो तुमने एक निश्चित क्षमता क्रोध के लिए निर्मित कर ली-कल फिर