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तुम जाते हो और फैला देते हो इस खबर को पश्चिम में। तुम नहीं होओगे भौतिकवादी क्योंकि तुमने पर्याप्त जीया है, तुम्हारे लिए खत्म हो गयी बात।
जब पूरब के निर्धन व्यक्ति पश्चिम में जाते हैं तो निस्संदेह वे धन इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं।
यह बात सीधी-साफ है। पूरब दरिद्र है और अब पूरब आध्यात्मिकता के लिए ललक नहीं रहा है। वह ज्यादा धन के लिए, ज्यादा भौतिक उपकरणों के लिए, ज्यादा इंजीनियरिंग तथा अणु-विज्ञान के लिए ललक रहा है। यदि बुद्ध भी उत्पन्न हो जाएं तो उनकी बात कोई नहीं करेगा पूरब में। लेकिन एक छोटा खिलौना, स्मृतनिक भारत दवारा छोड़ दिया जाता है और सारा देश पगला जाता है और खुशिर्या मनाता है। कितनी मूढ़ता है। एक छोटा –सा आणविक विस्फोट और भारत बहुत प्रसन्नता और गर्व अनुभव करता है, क्योंकि वह पांचवीं आणविक शक्ति बन जाता है।
पूरब दरिद्र है और पूरब अब भौतिकता की भाषा में सोच रहा है। एक दरिद्र मन सदा सोचता है भौतिकता के बारे में और भौतिकता जो सब दे सकती है उसके बारे में। पूरब आध्यात्मिकता की खोज में नहीं है। पश्चिम धनवान है और अब पश्चिम तैयार है खोजने के लिए।
लेकिन जब कभी सदगुरु मौजूद हो तो व्यक्ति को खोजना पड़ता है उसे। इसी खोजने के द्वारा ही बहुत –सी बातें घटती हैं। यदि मैं आता हूं तुम्हारे पास, तो तुम नहीं समझ पाओगे मुझे। यदि मैं आता हूं और खटखटाता हूं तुम्हारा द्वार, तो तुम सोचोगे मैं तुमसे कोई चीज मांगने आया हू; वह बात हो जाएगी तुम्हारा हृदय बंद कर देने की। नहीं, मैं तुम्हारे घर नहीं आऊंगा और नहीं खटखटाऊंगा। मैं तुम्हारे आने की और दस्तक देने की प्रतीक्षा करूंगा। और केवल दस्तक ही नहीं, मैं तुम्हें बाध्य भी करूंगा प्रतीक्षा करो को -क्योंकि वही है एकमात्र तरीका जिससे कि तुम्हारा हृदय खोला जा सकता
मैं नहीं जानता कि पतंजलि ने क्या कहा होता पश्चिम से। कैसे जान सकता हूं मैं? पतंजलि पतंजलि हैं; मैं नहीं हूं पतंजलि। लेकिन मैं यही कहना चाहूंगा पश्चिम उस जगह आ पहुंचा है जहां या तो आत्मघात या फिर आध्यात्मिक क्रांति घटेगी। यही दो विकल्प हैं। मैं ऐसा किन्हीं विशेष लोगों, विशिष्ट व्यक्तियों के लिए नहीं कह रहा हूं। ऐसा सारे पश्चिम के साथ ही है। या तो पश्चिम आत्मघात कर लेगा आणविक युद्ध द्वारा जिसके लिए कि वह तैयार हो रहा है, या फिर आध्यात्मिक
ण घटेगा। और कोई बहत ज्यादा समय बचा नहीं है। इसी शताब्दी में, मात्र पच्चीस वर्ष ही हैं और, पश्चिम या तो आत्मघात कर लेगा या फिर पश्चिम जानेगा उस सब से बड़े आध्यात्मिक जागरण को जो कि कभी न घटा होगा मानव –इतिहास में। बहुत कुछ लगा है दाव पर।
लोग आते हैं मेरे पास और वे कहते हैं कि 'आप संन्यास दिए चले जाते हैं बिना इस बात पर ध्यान दिए कि व्यक्ति उसके योग्य है या नहीं।' मैं कहता ह उनसे कि समय कम है, और मैं चिंता भी नहीं