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समाविष्ट कर सकते हो, तो तुम बहुत ज्यादा सक्षम हो जाओगे। तुम ज्यादा देर जी सकते हो। वस्तुत: वृद्धावस्था एकदम गिरायी ही जा सकती है। तुम बिलकुल अंतिम समय तक युवा रह सकते
हो।
भेद अस्तित्व रखते हैं। भोजन एक व्यक्तिगत आवश्यकता है। यदि तुम इसे बंद करोगे तो तुम मरोगे। कामवासना कोई व्यक्तिगत जरूरत नहीं है, यह एक आधिपत्य है। यदि तुम रोक दो तो तुम इस कारण बहुत कुछ पाओगे। लेकिन रोकना तीन प्रकार का हो सकता है तुम दमन कर सकते हो इच्छा का; उससे मदद न मिलेगी-तुम्हारी काम-ऊर्जा विकृत हो जाएगी। इसलिए मैं कहता हूं कि विकृत हो जाने से स्वाभाविक होना बेहतर है। जैन मुनि, बौद्ध भिक्षु, ईसाई, कैथेलिक साधु, जो सब जीए होते हैं मात्र पुरुष-समाजों में, पुरुष-समूहों में, सौ में से नब्बे प्रतिशत या तो हस्तमैथुन करने वाले होते हैं या फिर होमोसेक्यूअल, समलैंगिक। ऐसा होगा ही, क्योंकि कहां जाएगी ऊर्जा? और वे केवल दमन करते रहे हैं, उन्होंने हार्मोन्स के तंत्र को, शरीर के रसायन को रूपांतरित नहीं किया। वे नहीं जानते क्या करना है इसलिए वे केवल दमन ही करते हैं। दमन बन जाता है एक विकृति। मैं पहले प्रकार की विधियों के विरोध में हूं स्वाभाविक होना बेहतर है विकृत हो जाने से, क्योंकि विकारग्रसित व्यक्ति गिर रहा होता है स्वाभाविक से नीचे, वह पार नहीं जा रहा हो
फिर एक दूसरा प्रकार है जिसने शरीर के हार्मोन्स के तरीके को बदलने का प्रयत्न किया है हठयोग, योग आसन। और शरीर के रसायन को बदलने के बहुत ढंग होते हैं। दूसरी विधियां बेहतर, हैं पहले से, लेकिन फिर भी मैं उनके पक्ष में नहीं हूं। क्यों? क्योंकि यदि तुम बदलते हो अपने शरीर को, तो तुम नहीं बदलते हो। एक नपुंसक व्यक्ति ब्रह्मचारी होता है। लेकिन यह बात व्यर्थ है। हठयोग की विधियों द्वारा तुम नपुंसक हो जाओगे, हार्मोन्स वहां कार्य न कर रहे होंगे, या ग्रंथियाँ बिगड़ जाएंगी
और वे क्रियान्वित न हो सकेंगी, लेकिन यह कोई आध्यात्मिक विकास नहीं। तुमने एक ढांचे को, तंत्र को नष्ट कर दिया होता है, तुम उसके पार नहीं गए होते हो।
और यह बात भी जीवन की दूसरे प्रकार की समस्याओं की ओर ले जा सकती है। तुम स्त्री से भयभीत होओगे, क्योंकि जिस क्षण वह निकट आती है तुम्हारा बदला हुआ रसायन फिर से धारण कर लेगा पुराना ढांचा, एक प्रवाह। स्त्री की खास ऊर्जा होती है, स्त्री-ऊर्जा चुंबकीय होती है, और बदल देती है तुम्हारे शरीर की ऊर्जा को। इसलिए हठयोगी तो भयभीत हो गए स्त्रियों से। वे भाग गए हिमालय की तरफ और गुफाओं की तरफ। भय अच्छी चीज नहीं है। और यदि तुम भयभीत होते हो, तो तुम उसमें जा पड़ते हो। यह ऐसा है जैसे-एक आदमी अंधा हो जाता ताकि वह देख नहीं सके स्त्री को, लेकिन कोई ज्यादा मदद न मिलेगी उस बात से।
तीसरे प्रकार की विधि है? ज्यादा सजग हो जाना। शरीर को मत बदलना-जैसा कि वह है, अच्छा है वह। उसे स्वाभाविक बना रहने दो, तुम ज्यादा सजग हो जाओ। जो कुछ घटता है मन में और शरीर में तुम सजग होओ। स्थूल और सूक्ष्म पर्तों पर ज्यादा से ज्यादा होशपूर्ण हो जाओ। बस होशपूर्ण होने