Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 02
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 316
________________ सुखी होते हो तो कोई समय नहीं बचता। जीवन की लिप्सा है ज्यादा समय की लिप्सा। वह दिखाती है कि जो कुछ तुमने पाया है, पर्याप्त नहीं है; तुम अभी तक परितृप्त नहीं हुए।'मुझे और ज्यादा समय दो, ताकि मैं परितृप्त हो सकू। मुझे और जीवन दो, और भविष्य, बढ़ने को और जगह, क्योंकि मेरी सारी आकांक्षाए अभी अपूर्ण हैं।' वह व्यक्ति जो जीवन की लिप्सा लिए रहता है यही प्रार्थना किए जाता है : हे ईश्वर मुझे और समय दे दो, क्योंकि मेरी सारी इच्छाएं अभी भी मौजूद हैं। कोई चीज तृप्तिकारक नहीं रही मैं संतुष्ट नहीं मैं परितृप्त नहीं हूं और समय तो तेजी से बहा जा रहा है। मुझे और समय दे दो। यही है जीवन के प्रति लिप्सा का अर्थ : ज्यादा समय के लिए लिप्सा। जीवन सेतुम्हारा क्या अर्थ है? जीवन का अर्थ है: भविष्य से जुड़ा ज्यादा समय। मृत्यु से तुम्हारा क्या अर्थ होता है? मृत्यु का अर्थ होता, कहीं कोई भविष्य नहीं। यदि मृत्यु बिलकुल अभी आ जाए, तो भविष्य समाप्त हो जाता है, समय समाप्त हो जाता है। इसलिए तुम भयभीत हो मृत्यु से, क्योंकि वह तुम्हें समय न देगी और सारी तुम्हारी इच्छाएं अपूर्ण हैं। जीवन के विरोध में नहीं हैं पतंजलि। वस्तुत: वे जीवन के विरोध में नहीं हैं, इसीलिए वे जीवन के प्रति लिप्सा के विरोध में हैं। यदि तुम जीवन को जीते हो उसकी समग्रता सहित, उसका आनंद मनाते हो उसकी गहनतम संभावना तक, उसे घटित होने देते हो-तब जीवन के प्रति कहीं कोई लिप्सा न बचेगी। ज्यादा संवेदनशील हो जाओ, जीवंत, सजग हो जाओ, और तब तुम समय के प्रति लालायित न होओगे। वस्तुत: वह व्यक्ति जो जीवन से परितृप्त होता है, उसे मृत्य विश्राम की भाति दिखाई पड़ती है, एक बड़ी विश्रांति की भांति, जीवन की समाप्ति नहीं। वह उससे भयभीत नहीं रहता, स्वागत करता है, एक पुरा समदध जीवन जीया हो, तो मृत्यु होती है रात्रि, रात्रि की भांति आती। दिन भर तुमने काम किया, अब तुम शय्या सजाते और विश्राम करने लगते हो। ऐसे लोग हैं जो रात्रि से भयभीत होते हैं। मैं कलकत्ता में ठहरा करता था बहुत संपन्न व्यक्ति के पास जो रात्रि से ऐसे भयभीत रहता जैसे कि लोग से भयभीत रहते हैं। वह सो न सकता था क्योंकि वह सारा दिन विश्राम कर रहा होता था। तो कैसे वह आशा कर सकता था निद्रा की? वह धनी व्यक्ति था, उसके पास हर चीज थी, इसलिए कुछ नहीं करता था वह। केवल निर्धन लोग पैदल चलते हैं, केवल निर्धन लोग काम करते हैं! कहीं किसी जगह काम लिखता है कि एक समय आएगा भविष्य में जब सचमुच लोग इतने धनवान हो जाएंगे कि वे प्रेम भी न करेंगे। वे अपने नौकर को भेज देंगे ऐसा करने के लिए जदग एसा करने के लिए! वस्तुत: एक धनी व्यक्ति को प्रेम करना ही नहीं चाहिए। सारे प्रयास की चिंता ही क्यों करनी?-तुम भेज सकते हो नौकर को। यही तो कर रहे हैं धनी व्यक्ति नौकरों को भेजना पड़ता है जीवन जीने को, और वे विश्राम करते हैं।

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