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मुट्ठियों में नहीं कस सकते, तुम उससे चिपक नहीं सकते। जहां कहीं वह ले जाए, तुम सरक सकते हो उसके साथ। तुम्हें शुद्ध बादल की भांति हो जाना होता है, जहां कहीं उसे हवा ले जाए उसके साथ चलना होता है न जानते हुए कि वह कहां जा रहा है।
जीवन का कोई उद्देश्य नहीं होता। यदि तुम किसी एक निश्चित उद्देश्य की खोज में हो तो तुम जी नहीं पाओगे। जीवन उद्देश्यविहीन है। इसीलिए वह असीम है, इसीलिए यात्रा अंतहीन है। अन्यथा उद्देश्य पर पहुंच जाओगे, और फिर क्या करोगे तुम जब उद्देश्य मिल चुका होगा?
जीवन का कोई उद्देश्य नहीं। तुम एक उद्देश्य पा लेते, हो और हजारों उद्देश्य आगे होते हैं। तुम एक शिखर पर पहुंच जाते और तुम सोच रहे होते कि 'यह अंतिम है, मैं आराम करूंगा।' लेकिन जब तुम पहुंचते हो शिखर पर तो बहुत से और शिखर उदघाटित हो जाते हैं, ज्यादा ऊंचे शिखर अभी भी वहां जाने को हैं। यह सदा ऐसा ही होता है, तुम अंत तक कभी नहीं पहुंचते। यही अर्थ है परमात्मा के असीम होने का, जीवन के अंतहीन होने का कोई आरंभ नहीं और कोई अंत नहीं। भयभीत, स्वयं में बंद हुए, तुम चिपकोगे, और फिर तुम पीड़ित होओगे।
जीवन में से गुजरते हुए मृत्यु-भय है जीवन से चिपकाव है और यह बात सभी में प्रबल हैविदवानों में भी।
मृत्य को जाने बिना ही तुम भयभीत होते हो। कोई बात वहा भीतर गहरे में जरूर है, और बात यही है : तम्हारा अहंकार एक झठी घटना है। वह कुछ निश्चित चीजों का एक संयोजन है; उसमें कोई तत्व नहीं, कोई केंद्र नहीं। अहंकार मृत्यु से भयभीत है। यह तो वैसा ही है जैसे जब कोई छोटा बच्चा ताश के पत्तों का घर बना लेता है और बच्चा डरा हुआ होता है, भीतर आ रही हवा से डरा होता है। बच्चा भयभीत होता है कि शायद दूसरा बच्चा घर के पास आ जाएगा। वह स्वयं से भयभीत होता है, क्योंकि यदि वह कुछ करता है, तो घर त्रंत गिर सकता है।
तुम रेत में घर बनाते हो; तुम सदा भयभीत रहोगे, ठोस चट्टान वहां है नहीं उसकी नींव में। तूफान आते हैं और तुम कंपते हो क्योंकि तुम्हारा सारा घर कंपता है; किसी क्षण वह गिर सकता है। अहंकार ताश के पत्तों का घर है, और तुम डरे हुए हो। यदि तुम सचमुच ही जानते हो कि तुम कौन हो, तो भय तिरोहित हो जाता है, क्योंकि अब तुम असीम की, मृत्युहीनता की चट्टान पर होते हो।
अहंकार मरने ही वाला है क्योंकि वह पहले ही मरा हुआ है। उसका अपना कोई जीवन नहीं; वह केवल तुम्हारे जीवन को प्रतिबिंबित करता है। वह होता है दर्पण की भाति। तुम्हारा अस्तित्व शाश्वत है। पंडित-विद्वान तक भी, सत्य से इसलिए भयभीत हैं, क्योंकि पांडित्य दवारा तुम नहीं जान सकते