________________
जीयोगे, लेकिन उस समय तक जीवन जा चुका होता है। तैयारियां हो जाती हैं, लेकिन कोई मौजूद नहीं रहता उनसे आनंदित होने को । यही होता है डर, तुम इसे तुम्हारे अंतस्तल में गहरे रूप से जानते हो, तुम इसे अनुभव करते हो कि जीवन बहा जा रहा है, हर क्षण तुम मरते हो, हर क्षण तुम मर ही रहे हो।
यह भय मृत्यु का नहीं जो कहीं भविष्य में आने वाली है और तुम्हें नष्ट करने वाली है। यह तो हर क्षण घट रहा है। जीवन सरकता जा रहा है और तुम बिलकुल ही अक्षम हो और बंद हो। तुम पहले ही मर रहे हो जिस दिन तुम पैदा हुए, तुमने मरना शुरू कर दिया। जीवन की प्रत्येक घड़ी मृत्यु की भी घड़ी है। भय किसी अज्ञात मृत्यु का नहीं है, जो कहीं भविष्य में प्रतीक्षा कर रही है, भय तो बिलकुल अभी ही है। जीवन हाथ से निकला जा रहा है और तुम असमर्थ जान पड़ते हो तुम कुछ नहीं कर सकते। मृत्यु का भय मौलिक रूप से भय है जीवन का जो कि तुम्हारे हाथों से निकला जा रहा है।
तब भयभीत होकर तुम जीवन से चिपकते हो, लेकिन चिपकना कभी उत्सव नहीं बन सकता है। चिपकना आक्रामक है। जितना ज्यादा तुम जीवन से चिपकते हो, उतने ज्यादा तुम असमर्थ हो जाओगे। उदाहरण के लिए तुम किसी स्त्री से प्रेम करते हो, तुम चिपक जाते हो उससे जितने ज्यादा तुम चिपकते हो, उतना ज्यादा तुम बाध्य करोगे स्त्री को तुमसे दूर हो जाने में, क्योंकि तुम्हारा पीछे -पीछे लगे रहना उस पर एक बोझ हो जाएगा। जितना ज्यादा तुम उस पर कब्जा करने की कोशिश करोगे, उतना ज्यादा वह सोचेगी कि कैसे मुक्त हो, कैसे तुमसे दूर हो मैं कहता हूं तुमसे जिंदगी एक स्त्री है। उससे चिपकना मत। वह उनके पीछे आती है, जो उससे चिपकते नहीं। वह बहुत ज्यादा मिलती है उन्हें जो उससे चिपकते नहीं । यदि तुम चिपकते हो, तो वह चिपकाव ही जीवन को स्थगित कर देता है। तुम्हारा भिखमंगापन ही जीवन पर रोक लगा देता है। सम्राट होओ, मालिक होओ। जीवन जीयो, लेकिन उससे चिपको मत। किसी चीज से मत चिपको। चिपकाव तुम्हें असुंदर और आक्रामक बना देता है। चिपकाव तुम्हें एक भिखारी बना देता है और जीवन उनके लिए है जो सम्राट हैं, उनके लिए नहीं जो कि भिखारी हैं। यदि तुम भीख मांगते हो, तो तुम कुछ नहीं पाओगे। जीवन उन्हें बहुत ज्यादा देता है जो कभी मांगते नहीं हैं। जीवन उनके लिए एक आशीष बन जाता है जो उससे चिपकते नहीं जीयो उसे आनंदित होओ उससे उत्सव मनाओ उसका लेकिन कंजूसी कभी मत करना, उससे चिपकना मत। जीवन के प्रति यह चिपकाव ही तुम्हें मृत्यु का भय देता है, क्योंकि जितने ज्यादा तुम चिपकते हो उतने ज्यादा तुम समझ जाते हो कि जीवन वहा नहीं है - वह जा रहा है, वह चला जा रहा है तब मृत्यु का भय आ खड़ा होता है।
-
जीवन में से गुजरते हुए मृत्यु भय है जीवन से चिपकाव है और यह बात सभी में प्रबल हैविद्वानों में भी।