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कसौटी नहीं हो सकती। अशुद्ध को शुद्ध जानने का अर्थ हुआ कि अस्वाभाविक को स्वाभाविक जानना। यही है जो तुमने किया है, जो सारी मनुष्य-जाति ने किया है। और इसलिए तुम और- और अशुद्ध हो गये हो।
स्वभाव के प्रति सदा सच्चे रहना। जरा ध्यान दो कि क्या स्वाभाविक है, खोज लो उसे। क्योंकि अस्वाभाविक के साथ तुम सदा तनावपूर्ण, असहज, बेचैन रहोगे। किसी अस्वाभाविक में, कोई भी आराम से नहीं रह सकता। और तुम तुम्हारे चारों ओर अस्वाभाविक चीजें खड़ी कर लेते हो। फिर वे बोझ बन जाती हैं और वे तुम्हें नष्ट कर देती हैं। जब मैं कहता हूं 'अस्वाभाविक' तो मेरा मतलब होता हैतुम्हारे स्वभाव के बाहर की कोई चीज।
इसे ऐसे समझो: एक दूध बेचने वाला आया। तुमने दूध लिया और तुम कहते हो कि वह दूषित है। क्यों तुम कहते हो कि वह दूषित है? तुम ऐसा कहते हो, क्योंकि उसने उसमें पानी मिलाया हुआ है। लेकिन यदि पानी शुद्ध था और दूध भी शुद्ध था, तो दो शुद्धताएं दुगुनी शुद्धता बना देंगी! कैसे हो सकता है कि दो शुद्धताएं मिलें और चीज अशुद्ध हो जाए? लेकिन वे अशुद्ध हो जाती हैं। शुद्ध पानी और शुद्ध दूध मिले, और दोनों हो जाएंगे अशुद्ध। पानी हो जाएगा अशुद्ध, दूध भी हो जाएगा अशुद्ध, क्योंकि कोई अलग चीज, बाहर की कोई चीज प्रवेश कर जाती हैं।
जब मैं विद्यार्थी था यूनिवर्सिटी में तो मेरे पास एक दूध बेचने वाला आता था। वह बहुत प्रसिद्ध था यूनिवर्सिटी होस्टल में। लोगों का विश्वास था कि वह बहुत साधु-स्वभाव का आदमी है और कभी भी पानी न मिलाता होगा दूध में-जैसा चलन भारत में आमतौर से है। करीब-करीब असंभव होता है शुद्ध दूध प्राप्त कर लेना, लगभग असंभव ही। वह आदमी सचमुच ही बहुत अच्छा आदमी था। वह एक वृद्ध व्यक्ति था, एक वृद्ध ग्रामीण; बिलकुल ही अनपढ़, पर बहुत भले दिल का। अपने साधुस्वभाव के कारण सारी यूनिवर्सिटी में वह एक संत के रूप में जाना जाता था। एक दिन मैंने पूछा उससे, जब कि हम परस्पर परिचित हो चुके थे और हमारे बीच एक निश्चित मित्रता बन चुकी थी, 'संत, क्या वास्तव में यह सच ही है कि तुम पानी और दूध कभी नहीं मिलाते?' वह कहने लगा, 'बिलकुल सच है।' लेकिन फिर मैंने कहा, 'ऐसा तो असंभव है। तुम्हारे दाम तो उतने ही हैं जितने कि दूसरे ग्वालों के, तुम्हारा तो सारा धंधा घाटे में जा रहा होगा।' वह हंस पड़ा। वह कहने लगा, 'आप जानते नहीं। इसकी एक तरकीब है।' मैं बोला, 'बताओ मुझे वह तरकीब, क्योंकि मैंने सुना है कि तुम तो अपना हाथ भी रख देते हो रामायण पर, हिंदू बाइबल पर, यह कहते हुए कि तुम दूध में पानी कभी नहीं मिलाते।' वह बोला ही, ऐसा भी किया है मैंने क्योंकि मैं हमेश पानी में दूध ि
कानूनी तौर पर वह बिलकुल ठीक है। तुम शपथ ले सकते हो, तुम सौगंध ले सकते हो; इसमें कुछ अड़चन नहीं होगी। लेकिन चाहे तुम दूध में पानी मिलाओ या पानी में' दूध मिलाओ बात एक ही है, क्योंकि किसी चीज का मिश्रण उसे अशुदध बना देता है।