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यह अच्छा है। मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य के लिए यह बात सहायक हो सकती है, लेकिन मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य अस्तित्वगत स्वास्थ्य नहीं होता है।
शारीरिक रूप से तुम स्वस्थ हो सकते हो, तुम मनोवैशानिक रूप से स्वस्थ हो सकते हो, तो भी तुम शायद अस्तित्वगत रूप से बिलकुल स्वस्थ न होओ। बल्कि इसके विपरीत, जब तुम मनोवैज्ञानिक रूप से और शारीरिक रूप से स्वस्थ होते हो तो पहली बार तुम अस्तित्वगत जिज्ञासा के विषय में सचेत होते हो, भीतर की व्यथा का बोध होता है। इससे पहले तो तुम शरीर, मन और रोग के साथ ही इतने जड़े हए थे कि आंतरिक सत्ता की ओर देख ही न सकते थे। जब हर चीज ठीक बैठ जाती है, शरीर ठीक कार्य करता है, मन किसी अड़चन में नहीं रहता, अकस्मात तुम संसार की सबसे बड़ी जिज्ञासा के प्रति सजग हो जाते हो-जो अस्तित्वगत है, आध्यात्मिक है। अचानक. तुम पूछने लगते हो-इस सबका मतलब क्या है? मैं यहां क्यों हूं? किसलिए हूं? इस बात का खयाल किसी बीमार व्यक्ति को कभी नहीं आता, क्योंकि वह बीमारी से बहुत घिरा हुआ होता है। पहले तो उसे ध्यान रखना पड़ता है शरीर का, फिर वह कुछ और सोचेगा। फिर उसे ध्यान रखना पड़ता है मन का, फिर वह कुछ और सोचेगा। शरीर और मन यदि स्वस्थ हों, तो पहली बार वे तुम्हें वास्तविक तकलीफ में उतरने देंगे। और वह तकलीफ होगी आध्यात्मिक।
जब जुग आत्म-साक्षात्कार तक पहुंचने की विधि की तरह अपने विश्लेषणपरक मनोविज्ञान की बात करता है, तो उसे पता नहीं कि वह क्या कह रहा है। वह स्वयं आत्म-साक्षात्कार को उपलब्ध व्यक्ति नहीं है। का के जीवन में, फ्रायड के जीवन में गहरे उतरो, और तुम उन्हें साधारण मनुष्यों की भाति ही पाओगे। फ्रायड उनकी भांति ही क्रोध करता था, साधारण मनुष्यों से भी ज्यादा ही क्रोध करता था। वह उन्हीं की भाति घृणा करता था। वह ईर्ष्या करता था, इतनी ज्यादा कि जब उसे ईर्ष्या का दौरा पड़ता तो वह जमीन पर गिर पड़ता और बेहोश हो जाता। ऐसा बहुत बार हुआ फ्रायड के जीवन में। जब कभी ईर्ष्या उस पर चढ़ बैठती, वह इतना बेचैन हो जाता कि उसे गश आ जाता, मूर्छा आ जाती। यह आदमी और आत्म-साक्षात्कार को उपलब्ध? तो फिर बुद्ध का क्या होगा? तब तुम बुद्ध को कहा रखोगे?
फ्रायड जीया साधारण मानवीय आकांक्षा सहित; एक राजनैतिक मन। वह कोशिश कर रहा था मनोविश्लेषण को साम्यवाद की ही भांति एक आंदोलन बना देने की, और उसने कोशिश की उस पर नियंत्रण करने की। उसने किसी लेनिन और स्टालिन की भांति ही उस पर नियंत्रण करने की कोशिश की, कुछ ज्यादा ही सत्तापूर्ण। उसने तो का को अपना उत्तराधिकारी भी घोषित कर दिया था। और जरा जुग के चित्रों को देखो। जब कभी कं का चित्र मेरे सामने पड़ता है, मैं सदा बहुत ध्यान से देखता हूं; वह बहुत असाधारण चीज है। हमेशा गौर से देखना जुग के चित्रों को, तुम हर बात चेहरे पर लिखी पाओगे एक अहंकार! उसकी नाक को देखना, आंखों को, चालाकी है, क्रोध है; हर बीमारी चेहरे पर लिखी