________________
व्यक्ति तुम्हारे लिए नहीं। तुम किसी उसको खोज रहे हो जो कि तुम्हारे लिए एक आदर्श बन सके, और तुम बन सको एक छाया। और तुम बहुतों को पा सकते हो – बहुत से हैं जो आदर्श बनकर आनंदित होते हैं, क्योंकि अहंकार बहुत ज्यादा अच्छा महसूस करता है। जब बहुत से लोग एक व्यक्ति का अनुकरण करते हैं, तो अहंकार को यह बात बड़ी सुखद मालूम पड़ती है - मैं आदर्श हूं इतने सारे लोगों का! मैं बिलकुल ठीक होऊंगा, वरना क्यों इतने सारे लोग मेरा अनुसरण कर रहे हैं? जितनी ज्यादा भीड़ आदमी के पीछे होती है, अहंकार उतना ज्यादा मजबूत होता है।
तो ऐसे लोग हैं, जो चाहेंगे कि तुम अनुकरण करो, लेकिन मैं उनमें से नहीं हूं मैं ठीक विपरीत हूं। मैं तुम्हारे अनुकरण करने से खुश नहीं होता। जब कभी तुम ऐसा करने लगते हो, मुझे तुम पर बहुत अफसोस होने लगता है में हर ढंग से इसे अनुत्साहित करने की कोशिश करता हूं। मेरा अनुकरण मत करो। केवल देखो, सुनो, अनुभव करो। इसे सुनने में, देखने में, अनुभव करने में, यहां मेरे साथ मात्र जागरुक होने से ही धीरे धीरे तुम्हारी ऊर्जा तुम्हारे अपने केंद्र पर उतरने लगेगी। क्योंकि मुझे सुनने से मन ठहर जाता है, देखने से मन ठहर जाता है। मन के उस ठहरने में ही घटना घट रही होती है तुम अपने अस्तित्व के स्रोत तक लौट रहे होते हो, तुम अपने केंद्र में उतर रहे होते हो। मन की अव्यवस्था वहां नहीं रहती; अचानक तुम एक संतुलन पा लेते हो, तुम केंद्रित हो जाते हो।
और यही मैं चाहूंगा। तुम्हारे अपने स्रोत और केंद्र में उतरने से तुम्हारा जीवन उदित होगा। लेकिन यह मेरे प्रभाव के कारण न होगा, मैं कोई प्रभाव छोड़ना नहीं चाहता। और यदि वे छूट जाते हैं, तो मैं जिम्मेदार नहीं तुमने स्वयं ही कुछ किया होगा। तुम चिपकते रहे होओगे उन शब्दों से, प्रभावों से। यह सूक्ष्म होता है बिना निर्णय दिए ही रहना, केवल सुनते रहना, देखते रहना, मौजूद रहना, मेरे साथ बैठे रहना।
मेरा बोलना और कुछ नहीं है सिवाय मेरे साथ बैठने में तुम्हारी मदद करने के, यहां मेरे साथ होने में तुम्हारी मदद करने के। मैं जानता हूं क्योंकि मैं तो मौन में बैठ सकता हूं, लेकिन तब तुम्हारा मन बातचीत करेगा। तुम मौन नहीं रहोगे। इसलिए मुझे बोलना पड़ता है, ताकि तुम्हारे मन को न बोलने दिया जाए। तुम सुनने में तल्लीन हो जाते हो, संलग्न हो जाते हो, मन ठहर जाता है। उस अंतराल में तुम अपने स्रोत तक पहुंच जाते हो।
-
मैं हूं तुम्हारे केंद्र को खोजने में तुम्हारी मदद करने को, और यही है सच्चा शिष्यत्व। यह बात सचमुच ही नितांत अलग है उससे जिसे कि लोग शिष्यत्व समझते हैं। यह अनुसरण नहीं, यह गुरु को आदर्श बना लेने की बात नहीं। यह उस तरह की बात ही नहीं यह है तुम्हारे अपने केंद्र तक उतरने
को तुम्हारी मदद करने देना ।
मैं
गुरु
चौथा प्रश्न