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है।'तुम आत्महत्या क्यों नहीं करते? यदि जीवन इतना दुखदायी है, इतनी निराशाजनक अवस्था है, तो क्यों नहीं तुम कर लेते आत्महत्या? जीते ही क्यों हो? क्यों 'नहीं' नहीं हो जाते? गहरे तल पर, यही है वास्तविक आध्यात्मिक समस्या। लेकिन मरना कोई नहीं चाहता। वे लोग भी जो कि आत्महत्या करते हैं, इसी आशा में आत्महत्या करते कि वे एक बेहतर जीवन पा लेंगे, लेकिन जीवन से आसक्ति बनी रहती है। मृत्यु के साथ भी, वे आशा कर रहे हैं।
मैंने सुना है एक यूनानी दार्शनिक के बारे में जिसने अपने शिष्यों को मृत्यु के अतिरिक्त और कुछ नहीं सिखाया। निस्संदेह, किसी ने उसका अनुसरण तो कभी नहीं किया। लोग सुनते थे, वह बहुत ढंग से बोलने वाला आदमी था। आत्महत्या तक के बारे में उससे सुनना सुंदर लगता था, सुनने लायक लगता था- अनुसरण नहीं किया किसी ने उसका। वह स्वयं जीया नब्बे वर्ष की संपूर्ण अवस्था तक। उसने स्वयं नहीं की आत्महत्या। जब वह मृत्यु –शय्या पर था, किसी ने उससे पूछा, 'आपने निरंतर आत्महत्या की बात सिखायी। आपने स्वयं क्यों न कर ली आत्महत्या?' उस वृद्ध, मरणासन्न दार्शनिक ने अपनी आंखें खोली और बोला, 'मुझे यहां बने रहना था लोगों को शिक्षा देने के लिए ही।'
जीवन से आसक्ति गहरी बात है। पतंजलि इसे कहते हैं, 'अभिनिवेश', जीवन के लिए ललक। यह क्यों होती है यदि इतनी ज्यादा पीड़ा मौजूद है तो? लोग मेरे पास आते हैं, और बहुत गहरी व्यथा लिए वे अपनी पीड़ाओं की बात करते हैं, लेकिन वे जीवन छोड़ने को तैयार नहीं दिखते। जीवन की तमाम पीड़ाओं के साथ भी, जीवन जीने लायक जान पड़ता है। कहां से चली आती है यह आशा? यह एक विरोधाभास है। और इसे समझना है।
वस्तुत: तुम जीवन से ज्यादा चिपकते हो यदि तुम दुखी होते हो तो। जितने ज्यादा तुम दुखी होते हो, उतने ज्यादा तुम चिपकते हो। वह व्यक्ति जो कि प्रसन्न होता है जीवन से चिपकता नहीं है। ऊपर सतह पर तो यह बात विरोधाभासी मालूम पड़ेगी, लेकिन यदि तुम गहराई में उतरो, तो समझोगे कि बात क्या होती है। लोग जो पीड़ित हो रहे होते हैं, वे सदा आशावान होते हैं, आशावादी। वे सदा आशा करते हैं कि कल कछ न कछ घटने वाला है। लोग जो गहरे दुख में और नरक में जीए उन्होंने स्वर्ग का, स्वर्ग की धारणा का निर्माण कर लिया। वह सदा आने वाले कल में ही होता है; वह आता कभी नहीं। वह सदा कहीं भविष्य में रहता है, एक प्रलोभन की गति, तुम्हारे सामने झलकता रहता।
यह मन की एक चालाकी होती है। स्वर्ग-मन की सबसे बड़ी चालाकी है। मन कह रहा होता है 'आज की चिंता मत करो, कल स्वर्ग है। बस किसी न किसी तरह आज से गुजर जाओ। उस प्रसन्नता की तुलना में जो कि कल के लिए तुम्हारी प्रतीक्षा में है, यह कुछ भी नहीं।' और वह कल इतना करीब जान पड़ता है। निस्संदेह वह कभी नहीं आता, वह आ नहीं सकता। कल एक अनस्तित्वमयी बात है। जो कुछ भी आता है वह सदा आज ही होता है, और आज नरक है। लेकिन मन सांत्वना देता है, उसे सांत्वना देनी ही पड़ती है, अन्यथा करीब-करीब असंभव ही होगा सहना-पीड़ा असहनीय होती है। उसे सहना पड़ता है।