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दृष्टि का ही अभाव है। पहले फ्रायड और का ने चीजों को अलग किया है, उन्होंने समग्र को तोड़ा है, और अब असागोली कोशिश कर रहा है किसी तरह उन हिस्सों को जोड़ने की।
तुम आदमी की चीर-फाड कई हिस्सों में कर सकते हो, जब वह जीवंत था; जब तुम उसकी चीरफाड़ कर देते हो, तो फिर वह जीवंत नहीं रहता। अब तुम फिर से हिस्सों को वापस रख सकते हो, लेकिन-जीवन नहीं लौटेगा। वहां मृत लाश होगी। और हिस्सों को भी फिर से मिलाकर रख दिया जाए तो वह समग्र नहीं बन जाएगा। फ्रायड और कं ने जो किया, असागोली उसके लिए पछता ही रहा है। वह हिस्सों को फिर से मिला रहा है, लेकिन वह होती है लाश। उसमें कोई संश्लेषण नहीं होता।
तुम्हें देखना होता है समग्र को, और समग्र एक बिलकुल ही अलग चीज है। अब तो जीव –शास्त्री भी जान गए हैं, चिकित्सा शास्त्र भी हर रोज अधिकाधिक बोध पा रहा है इस बात का कि जब तुम आदमी का रक्त लेते हो परखने को, तो वह वही रक्त नहीं रहता जो कि आदमी में. बह रहा था, क्योंकि अब वह मृत होता है। तुम किसी और ही चीज का परीक्षण कर रहे होते हो। जो रक्त घूमफिर रहा होता है आदमी में वह जीवंत होता है। वह संबंध रखता है समग्र से, एक सुव्यवस्थित कम से, वह बहता है उसमें से। वह उतना ही जीवंत होता है जितना कि शरीर का हाथ। तुम काट दो हाथ को, तो फिर वही हाथ नहीं रहता। जब कि तुम उसे शरीर में से निकाल लेते हो तो रक्त वैसा ही कैसे रह सकता है? लैबर में ले जाओ उसे और परीक्षण करो उसका, फिर वह वही रक्त नहीं रहता।
जीवन समग्र इकाई की भाति अस्तित्व रखता है, और पश्चिमी दृष्टि है चीर-फाड़ करने की, हिस्सों में
की, हिस्से को समझने की और हिस्से के दवारा समग्र को समझने, जोडने की कोशिश करने की। तुम सदा चूकोगे। यदि तुम असागोली की भांति जोड़-जाड़ भी कर सको, तो वह समाविष्ट करने का बोध लाश की भांति ही होगा. जो किसी तरह इकट्ठा तो किया हआ होता है, लेकिन कोई जीवंत एकत्व उसमें नहीं होता।
फ्रायड और जुग स्वप्नों पर काम करते थे। पश्चिम में वह एक आविष्कार था, एक तरह से बहुत बड़ा आविष्कार, क्योंकि पश्चिमी मन बिलकुल भूल ही चुका था नींद के बारे में, स्वप्नों के बारे में। पश्चिम का आदमी कम से कम तीन हजार वर्ष जीया स्वप्नों और नींद के बारे में बिना कुछ विचार किए। पश्चिम का आदमी सोचता रहा जैसे कि केवल जागने का समय ही जीवन है, लेकिन जागने के घंटे तो केवल दो तिहाई भाग में ही होते हैं। यदि तुम साठ वर्ष तक जीते हो, तो तुम सोए रहोगे बीस वर्ष तक। एक तिहाई जीवन होगा स्वप्नों में और निद्रा में। यह एक बड़ी घटना है, यह तुम्हारे जीवन का एक तिहाई भाग ले लेती है। इसे यूं ही अलग नहीं निकाल दिया जाएगा, कोई चीज घट रही है वहां'। वह तुम्हारा हिस्सा है, और कोई छोटा हिस्सा नहीं बल्कि एक बड़ा हिस्सा। फ्रायड और का यह अवधारणा लौटा लाए कि आदमी को समझना होगा उसके स्वप्नों और उसकी निद्रा सहित, और बहत कुछ कार्य किया गया है इसी विषय पर। लेकिन जब का सोचने लगता है कि यह कोई आत्मसाक्षात्कार जैसी चीज है, तो बहुत दूर की सोच बैठता है।