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3-आपके व्यक्तित्व और शब्दो से प्रभावित हुए बिना
कोई खोजी आपका शिष्य कैसे हो सकता है?
4-अहंकार के शिकार होने से बचकर कैसे अपने स्वभाव को पहचाने?
5-यदि शार्टकट की बात गलत है, तो फिर आप छलांग की बात क्यों करते है?
पहला प्रश्न:
परसों आपका एक उत्तर सुन कर मुझे ऐसा लगा कि पश्चिम में जागरण की एक विधि की तरह जो स्वप्नों का उपयोग किया जाता है उसको आप अधिक मूल्य नहीं देते। मैं विशेषकर जुंग की विधि की सोच रहा है उसके आत्म-साक्षात्कार के मनोविज्ञान के अंतर्गत।
हा, 'मैं ज्यादा मल्य नहीं देता फ्रायड को, का को, एडलर या असागोली को। फ्रायड, जंग, एडलर और
ऐसे दूसरे लोग, समय की रेत पर खेलते हुए बच्चे ही हैं। उन्होंने सुंदर कंकड़-पत्थर इकट्ठे कर लिए हैं, सुंदर रंगीन पत्थर, लेकिन यदि तुम परम शिखर की ओर देखते हो, तो वे कंकड़ों और पत्थरों से खेलते हुए मात्र बच्चे हैं। वे पत्थर सच्चे हीरे नहीं होते हैं। और जो कुछ उन्होंने पाया है, वह बहुत ज्यादा अपरिष्कृत, आदिम है। इसे समझने को तुम्हें मेरे साथ बहुत धीरे – धीरे चलना होगा।
कोई आदमी शारीरिक रूप से बीमार हो सकता है, तब वैदय की, डाक्टर की जरूरत होती है। व्यक्ति मनोवैज्ञानिक रूप से बीमार हो सकता है, तब फ्रायड और जुग और कईयों दवारा थोड़ी मदद की जा सकती है। लेकिन जब व्यक्ति अस्तित्वगत रूप से बीमार होता है, तो न तो डाक्टैर और न ही मनोवैज्ञानिक कोई मदद दे सकता है। अस्तित्वगत रोग आध्यात्मिक होता है। वह न तो शरीर का होता है और न ही मन का होता है, वह समग्र का होता है-और समग्र सभी हिस्सों के पार का होता है। समग्र का कोई संघटन मात्र ही नहीं होता है; वह हिस्सों का संघटन नहीं है। वह हिस्सों के पार की कोई ब! त होती है। वह कुछ ऐसी बात है जो कि सारे हिस्सों को स्वयं में पकड़ रखती है। वह हर चीज के परे होती है।