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लोग सोचते कि केवल कमजोर व्यक्तित्व के लोग सम्मोहित किए जा सकते हैं। बिलकुल गलत है बात, केवल बड़े शक्तिशाली व्यक्ति सम्मोहित किए जा सकते हैं। कमजोर आदमी इतना असंगठित होता है कि उसमें कोई संगठित एकत्व नहीं होता, उसमें अपना कोई केंद्र नहीं होता। और जब तक तुम्हारे पास किसी तरह का कोई केंद्र नहीं होता, सम्मोहन कार्य नहीं करता। क्योंकि कहां से करेगा वह काम, कहां से व्याप्त होगा तुम्हारे अंतस में? और एक कमजोर आदमी इतना अनिश्चित होता है हर चीज के बारे में, इतना निश्चयहीन होता है अपने बारे में, कि उसे सम्मोहित नहीं किया जा सकता है। केवल वे ही लोग सम्मोहित किए जा सकते हैं जिनके व्यक्तित्व शक्तिशाली होते हैं।
मैंने बहुत लोगों पर काम किया है और मेरा ऐसा जानना है कि जिस व्यक्ति को सम्मोहित किया जा सकता है उसे ही सम्मोहनरहित किया जा सकता है, और वह व्यक्ति जिसे सम्मोहित नहीं किया जा सकता, वह बहुत कठिन पाता है आध्यात्मिक मार्ग पर बढ़ना, क्योंकि सीढ़ियां दोनों तरफ जाती हैं। यदि तुम आसानी से सम्मोहित किए जा सकते हो तो तुम आसानी से सम्मोहनरहित किए जा सकते हो। सीढ़ी वही होती है। चाहे तुम सम्मोहित हो या कि असम्मोहित, तुम एक ही सीढ़ी पर होते हो; केवल दिशाएं भेद रखती हैं।
मैं एक युवक पर बहुत वर्षों तक कार्य करता रहा था। एक दिन मैंने उसे सम्मोहित किया और जिसे सम्मोहनविद कहते हैं पोस्ट-हिप्नोटिक सजेशन, सम्मोहनोत्तर सुझाव, एक दिन वही दिया उसे। मैंने कहां उससे, 'कल ठीक इसी समय-उस समय सुबह के नौ बजे थे-तुम मुझसे मिलने आओगे। तुम्हें आना ही होगा मुझसे मिलने। कोई स्पष्ट कारण नहीं है आने का, तो भी ठीक नौ बजे तुम्हें आना होगा।' वह होश में न था मैंने कहां उससे, 'जब तुम आओगे नौ बजे, ठीक नौ बजे तुम कूद पड़ोगे मेरे बिस्तर में, चूम लोगे को, आलिंगन करोगे तकिए का जैसे कि तकिया तुम्हारी प्रेमिका हो।'
निस्संदेह, अगले दिन
या पीने नौ बजे, लेकिन मैं अपने बेडरूम में नहीं बैठा था, मैं बरामदे में बैठा इंतजार कर रहा था उसका। वह आया। मैंने पूछा, 'क्यों आए हो तुम?' उसने कंधे उचका दिए। वह कहने लगा, 'बस इत्तफाक से मैं गुजर रहा था यहां से और एक विचार आ बना क्यों न आपके पास चलूं?' उसे होश नहीं था कि सम्मोहन वाला सुझाव काम कर रहा था, वह ढूंढ रहा था कोई व्याख्या। वह बोला, 'मैं बस यूं ही गुजर रहा था इस रास्ते से।' मैंने पूछा उससे, 'क्यों गुजर रहे थे तुम इस रास्ते से? तुम पहले कभी नहीं गुजरते, और यह रास्ता तुम्हारे रास्ते से अलग पड़ता है। जब तक कि तुम मेरे ही पास न आना चाहो, कोई तुक नहीं है शहर से बाहरी इलाके में जाने की।' वह बोला, 'बस सुबह की सैर के लिए ही.....'-एक तर्कसंगत व्याख्या। वह नहीं सोच सकता था कि वह अकारण आया था, वरना तो वह बहुत ही तोड़-बिखेर देने वाला अनुभव हो जाता अहंकार के लिए।'क्या पागल हुए हैं?' वह शायद ऐसा सोचे। लेकिन वह बेचैन था, असुविधा में था। वह देख रहा था चारों तरफ कारण न जानते हए। वह खोज रहा था तकिए को और बिस्तर को और बिस्तर था नहीं वहा पर। और जानबूझ कर मैं बैठा हआ था बाहर जैसे-जैसे मिनट बीते वह ज्यादा और ज्यादा बेचैन हआ।