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आज इतना ही।
प्रवचन 33 - दुःख का मूल होश का अभाव और तादात्म्य
योगसूत्र:
(साधनापाद)
अनित्याशुचिदुःखानात्मसु नित्यशुचिसुखात्मख्यातिः अविद्या ।। 511
अविद्या है - अनित्य को नित्य समझना, अशुद्ध को शुद्ध जानना, पीड़ा को सुख और
अनात्म को आत्म जानना ।
हग्दर्शनशक्त्योरेकात्मतेवास्सिता ।। 611
अस्मिता है - दृष्टा का दृश्य के साथ तादात्म्य |
सुखानुशयी रामः ।। 7।।
आकर्षण और उसके द्वारा बना आसक्ति होती है। उस किसी चीज के प्रति जो सुख पहुंचाती है।
दुःखानुशयी द्वेषः 11 811
द्वेष उपजता है किस उस चीज से जो दुःख देती है।