________________
बोला, 'मैं बीमार था। आप बात करते थे उपवास की और आपने कहां कि उपवास अच्छा नहीं, इसलिए
',
मैं भोजन के रस में डूब गया। बहुत ज्यादा खा लिया मैंने।'
ऐसा सदा घटता है उपवास से तुम सरकते हो एकदम दूसरी अति की ओर। ठीक कहीं मध्य में, सम्यकत्व है। बुद्ध ने फिर फिर हर चीज के साथ प्रयोग किया है सम्यक शब्द का ब सम्यकभोजन, सम्यक - स्मृति, सम्यक - शान, सम्यक - प्रयास। जो कुछ भी कहां उन्होंने, सदा उसके साथ सम्यक शब्द जोड़ दिया उन्होंने शिष्य पूछते, क्यों सदा आप सम्यक शब्द जोड़ देते हैं?' वे कहते, 'क्योंकि तुम लोग खतरनाक हो। या तो तुम इस अति पर होते हो या दूसरी अति पर ।'
यदि तुम उपवास करते हो तो भोजन में अति रस लेने की बात आ बनेगी। यदि तुम प्रयास करते हो, तो सेक्स के प्रति लोलुपता निर्मित होगी जो कुछ भी तुम जबर्दस्ती लाद लेते हो अपने पर अंततः वह जबर्दस्ती तुम्हें ले जाएगी भोगासक्ति की ओर ।
एक सच्चा संवेदनशील व्यक्ति जीवन से इतना ज्यादा आनंदित होता है कि वह आनंद ही उसे शीतल और शांत कर देता है। उसमें कोई सम्मोहित आवेश नहीं होते। वह संवेदनात्मक होता है।
और यदि तुम मुझसे पूछते हो, तो बुद्ध ज्यादा संवेदनशील हैं किसी भी अन्य व्यक्ति से वे होंगे ही, क्योंकि वे बहु जीवंत हैं। जब बुद्ध देखते हैं वृक्ष की तरफ तो जितना तुम देख सकते हो, वे जरूर उससे ज्यादा रंग देख रहे होंगे, उनकी आंखें ज्यादा संवेदनशील होती है, ज्यादा संवेदनात्मक होती हैं। जब बुद्ध भोजन करते हैं, तो जितने कि तुम हो सकते हो, वे जरूर तुमसे ज्यादा आनंदित हो रहे होंगे क्योंकि उनके भीतर की हर चीज एकदम ठीक कार्य कर रही होती है। यदि तुम गुजरो बुद्ध के पास से, तो तुम सुन सकते हो बिलकुल ठीक कार्य कर रही संरचना की गुनगुनाहट, जैसे कि बिलकुल ठीक कार्य कर रही कार की मर्मर ध्वनि हो। हर चीज बिलकुल ठीक हो रही होती है, जैसी कि होनी चाहिए। वे संवेदनशील होते हैं, वे सुख के प्रति संवेदनात्मक होते हैं, लेकिन कोई आसक्ति नहीं होती । कैसे हो सकती है?
भोगासक्ति एक रोग है, भोगासक्ति एक असंतुलन है तो भी तुमसे मैं ऐसा नहीं कहता मैं कहता हूं पूरे डूबो भोगासक्ति में और खत्म करो बात उसे अपने सिर पर मत उठाए रहो वह बात ज्यादा बुरी है कुछ करने से।'
डूबो! यदि तुम भोजन के रस में डूबना चाहते हो तो पूरी तरह डूबो शायद रसविमग्नता के द्वारा तुम अपने ठीक होश तक पहुंच जाओ। शायद पूरे अनुभव द्वारा तुम परिपक्वता पा जाओ, उस प्रौढ़ता तक पहुंच जाओ जो कहती है कि यह बात मूढ़ता है।
मुझे याद है गुरजिएफ का कहना कि वह एक बेरीनुमा फल पसंद करता था । वह मिलता था काकेशस में, और वह सदा बुरा रहता उसके स्वास्थ्य के लिए जब कभी वह खा लेता उसे उसका पेट खराब हो
,