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मां भोजन पका रही होती है और बच्चा प्रश्न पूछता जाता है और कूदता जाता है और वह चिड़चिड़ा
है। मैं जानता हूं कि कई समस्याएं हैं, मां को भोजन पकाना होता है। लेकिन बच्चा पहले स्थान पर होना चाहिए, क्योंकि बच्चा संसार बनने वाला है, बच्चा आनेवाला कल बनने वाला है, बच्चा होने वाला है आने वाली मानवता उसे होना चाहिए पहला प्राथमिकता उसकी होनी चाहिए। अखबार तो बाद में भी पढ़े जा सकते हैं, और यदि न भी पढ़े जाएं, तो तुम कुछ ज्यादा नहीं गवांओगे। वही बकवास हर रोज चलती छ स्थान बदल जाते, नाम बदल जाते, लेकिन वही बकवास चलती चली जाती है तुम्हारे अखबार तो बिलकुल विक्षिप्त हैं।
भोजन बनाने में थोड़ी देर की जा सकती है, लेकिन बच्चे की जिज्ञासा विलंबित नहीं की जानी चाहिए । क्योंकि बिलकुल अभी वह एक भावदशा में था और हो सकता है वह मौज, वह तरंग फिर न आए। बिलकुल अभी वह भाव की गरिमा से भरा है और कोई बात संभव है। लेकिन क्या तुमने ऐसी माताओं को देखा है जो बच्चों के साथ नाच रही होती, कूद रही होती, जमीन पर लोटती हुई खेल कर आनंदित हो रही होतीं? - नहीं । माताएं तो गंभीर होती हैं, पिता बहुत गंभीर होते हैं, वे संसार भर को कंधों पर लिए फिरते हैं। और बच्चा तो बिलकुल अलग ही संसार में जीता है। तुम जबर्दस्ती करते हो कि वह तुम्हारे उदास संसार में, जीवन के प्रति दुखी दृष्टिकोण में प्रवेश करे। वह बच्चे की भांति विकसित हो सकता था, वह इस गुणधर्म को सम्हाल सकता था आश्चर्य, विस्मय के गुणधर्म को और यहां अभी होने के, क्षण में जीने के गुणधर्म को ।
इसे मैं कहता हूं सच्ची क्रांति कोई और दूसरी क्रांति मनुष्य की मदद न करेगी फ्रांसीसी, रूसी या कोई क्रांति मनुष्य की मदद न करेगी, किसी ने मदद की नहीं। माता-पिता और बच्चे के बीच मूल रूप से वही ढांचा चलता आता है। और इसका कारण होता है। तुम निर्मित कर सकते हो एक कम्युनिस्ट संसार, लेकिन वह कोई ज्यादा अलग नहीं होगा पूंजीपतियों के संसार से लेबल केवल सतह पर ही अलग होंगे। तुम बना सकते हो समाजवादी दुनिया, तुम बना सकते हो गांधीवादी दुनिया, लेकिन वह अलग नहीं होगी। क्योंकि आधारभूत क्रांति तो होती है माता-पिता और बच्चे के बीच । अंतर्संबंध होता है कहीं माता-पिता और बच्चे के बीच, और यदि वह अंतर्संबंध नहीं बदलता, तो संसार उसी चक्र में घूमता जाएगा।
जब मैं यह कहता हूं तो मेरा यह मतलब नहीं कि मैं तुम्हें दुखी होने का एक बहाना दे रहा हूं। मैं तो तुम्हें केवल व्याख्या देता हूं ताकि तुम जाग सकी। इसलिए अपने मन में यह कहने की कोशिश मत करना कि 'अब क्या किया जा सकता है? मैं चालीस या पचास या साठ का हो ही गया हूं; मेरे मातापिता मर चुके हैं और यदि वे जीवित भी होते तो भी मैं अतीत से मुक्त कैसे हो सकता था? वह घट चुका है, इसलिए मुझे वैसे ही जीना है जैसा कि मैं हूं।' नहीं, यदि तुम समझ लो तो तुम इसमें से एकदम बाहर आ सकते हो उससे चिपकने की जरूरत नहीं है।