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तुम फिर से बच्चे बन सकते हो। जीसस ठीक कहते हैं, जो छोटे बच्चों की भांति हैं, केवल वही मेरे प्रभु के राज्य में प्रवेश कर पाएंगे।' बिलकुल ठीक है बात। केवल वे ही जो छोटे बच्चों की भाति हैं:! यही है क्रांति: सबको छोटे बच्चे की भांति बना देना। शरीर विकसित हो सकता है लेकिन चेतना की गुणवता निर्दोष रहनी चाहिए, एकदम ताजा, बच्चे की भांति ।
तुम वहा हो ही, जहां कि तुम्हें होना चाहिए। तुम उसी स्थान पर ही हो, जिसे तुम खोज रहे हो । दुख से बनी आसक्ति से जरा बाहर आने का थोड़ा सा प्रयास कर लो। दुख से नाता मत बनाओ, उत्सव से जुडो तुम जीवन के प्रति एक कदम बढ़ाते हो और जीवन तुम्हारे प्रति एक हजार कदम बढ़ाता है। जरा एक कदम बाहर आ जाना दुख से बनी आसक्ति में से। मन तुम्हें पीछे ही खींचता जाएगा। बस उदासीन बने रहना मन के प्रति और कह देना मन से, 'ठहर जाओ मैं बहुत जी लिया तुम्हारे साथ, अब मुझे बिना मन के जीने दो' ऐसा ही होता है एक बालक मन के बिना जीता है या जीता है। अ - मन के साथ ।
तीसरा प्रश्न :
कई बार संवेदनशीलता के साथ एक नकारात्मक भाव- दशा मुझ में क्यों बनने लगती है?
नकारात्मक
7कारात्मक और विधायक दोनों ही भाव-दशाएं विकसित होंगी। यदि तुम बहुत ज्यादा प्रसन्न
होना चाहते हो, तो साथ-साथ बहुत ज्यादा अप्रसन्न होने की क्षमता भी विकसित होगी । यदि तुम चाहते हो कि नकारात्मक नहीं विकसित होनी चाहिए, तो तुम्हें विधायक को भी काट देना पड़ता है। ऐसा ही हुआ है तुम्हें सिखाया जाता रहा है कि क्रोध मत करना, लेकिन यदि तुम क्रोधित होने में सक्षम नहीं होते, तो करुणा का अभाव रहेगा। तब तुम करुणामय नहीं हो पाओगे। तुम्हें सिखाया जाता रहा है कि घृणा मत करो, लेकिन फिर तो प्रेम का अभाव रहेगा; तुम प्रेम नहीं कर पाओगे और यही है दुविधा ।
प्रेम और घृणा एक साथ विकसित होते हैं। वस्तुतः वे दो चीजें नहीं हैं। भाषा तुम्हें गलत प्रभाव दे देती है। हमें प्रेम और घृणा- ये शब्द प्रयोग नहीं करने चाहिए, हमें प्रयोग करना चाहिए प्रेमघृणा यह हुआ एक शब्द, वहां उनके बीच एक जुड़ाव - रेखा तक नहीं होनी चाहिए - प्रेमघृणा – एक हाइफन तक नहीं। क्योंकि वह भी दर्शाएगा कि वे दो हैं, लेकिन किसी तरह जुड़ गए हैं। वे एक हैं। प्रकाश