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अहंकार सबसे बड़ा टेक्निशियन है संसार में। अहंकार जीता है जानकारी पर। अहंकार सारी
टेक्यालॉजी का आधार ही है। पूरब में टेक्यालॉजी विकसित नहीं हो सकी, क्योंकि लोग अहंकार के प्रति ज्यादा और ज्यादा सचेत हो गए और असली जड़ ही कट गयी। वे जीए समर्पित जीवन।
कैसे तुम हो सकते हो टेक्यीशियन, टेक्यालॉजिस्ट, यदि तुम जीते हो समर्पित जीवन? तब तुम हर चीज छोड़ देते हो जीवन पर और तुम बहते हो। तब तुम इसकी चिंता नहीं करते कि क्या करना है और उसे कैसे करना है। पश्चिम बहुत ज्यादा कुशल हो गया है टेक्यालॉजी में। कारण यह है कि पश्चिम कोशिश करता रहा है अहंकार का संरक्षण करने की, अहंकार को पोषित करने की, और अहंकार ही आधार है भीतर टेक्यालॉजी का सारा ढांचा आधारित है अहंकार पर। यदि अहंकार गिर जाता है, टेक्यालॉजी का सारा ढांचा गिर जाता है। संसार फिर से स्वाभाविक हो जाता है, मनुष्य-निर्मित नहीं रहता। तब यह ईश्वर की सृष्टि होती है। और ईश्वर ने अभी सृष्टि-सृजन समाप्त नहीं किया है, जैसा कि ईसाई सोचते हैं। वे सोचते हैं कि उसने उसे समाप्त कर दिया एक सप्ताह में ही, वास्तव में तो छ: दिन में ही, और सातवें दिन उसने विश्राम किया!
ईश्वर ने सृजन समाप्त नहीं किया है। सृजन तो एक सातत्य है; वह निरंतर होता रहता है। वह कभी भी समाप्त नहीं होने वाला। हर क्षण ईश्वर सृजन कर रहा है। वस्तुत: यह कहना कि ईश्वर सृजन कर रहा है गलत है-ईश्वर सृजनात्मकता है। सृजनात्मकता और निरंतरता; एक अनंत सृजनात्मकता। लेकिन आदमी, अहंकार युक्त हुआ ईश्वर के विरुद्ध खड़ा हो जाता है। तब आदमी प्रकृति को विजय करने की कोशिश करने लगता है। सारी टेक्यालॉजी ही एक बलात्कार है। समर्पित होकर तुम प्रेम में होते हो, टेक्यालॉजी सहित तुम बलात्कार से जुड़ते हो। तुम कोशिश कर रहे होते हो सारी प्रकृति का बलात्कार करने की, और आधार अहंकार ही है।
मत पूछना 'कैसे?' केवल मुझे समझने की कोशिश करना; जरा कोशिश करना सार को समझने की। कुछ ज्यादा बुद्धि की जरूरत नहीं है। हर कोई इतना बदधिमान होता है कि सार को समझ ले। बस, समझ लेना सार-तत्व को और कोशिश करना उसी दृष्टि के साथ, उसी समझ के साथ, उसी बोध के साथ जीने की, बस इतना ही। जरा ध्यान से देखना, अहंकार के तरीकों को, और तुम बने रहना देखने वाले; कर्ता कभी मत बनना।
यदि तुम सजग नहीं रहते तो द्रष्टा और कर्ता के बीच की दूरी कोई बहुत ज्यादा नहीं है। बिलकुल तुम्हारे साथ ही होता है कर्ता। तुम द्रष्टा से कर्ता में सरक जाते हो, और तुम होते हो अहंकार। तुम कर्ता से बाहर सरक जाते हो और पहुंच जाते हो द्रष्टा में, और तुम समर्पित हो, अब तुम अहंकार न रहे।