________________
क्योंकि तब तुम आराम कर सकते हो। और तुम कह सकते हो कि ठीक है तब। अगर यह लंबे समय काही प्रश्न है तो बिलकुल अभी तो कोई समस्या ही नहीं है। जो कुछ हम कर रहे हैं उसे हम किए चले जा सकते हैं। भविष्य में किसी दिन एक सुनहरा कल, एक इंद्रधनुषी चीज जब वह उपलब्ध हो जाएगी, तो तुम नृत्य करोगे।
इस बीच तुम दुखी हो सकते हो, इस बीच तुम स्वयं को दुखी कर सकते हो, इस बीच तुम सुख पा सकते हो स्वयं को पीड़ा पहुंचाने का ! यह तुम पर निर्भर है। यदि तुम दुख के हक में निर्णय लेते हो, तो कोई जरूरत नहीं उसके आसपास ज्यादा दर्शनशास्त्र खड़ा कर लेने की तुम सीधे-सीधे कह सकते हो, मुझे दुख में रस है!'
यह सचमुच ही आश्चर्यजनक बात है कि कोई कभी पूछता नहीं कि बिलकुल अभी मैं कैसे दुखी हो सकता हूं? अनुशासन चाहिए, प्रशिक्षण चाहिए। मुझे कई पतंजलियो के पास जाना होगा और पूछना होगा बड़े गुरुओं से और तभी मैं सीखूंगा कि कैसे दुखी होऊं ।
ऐसा लगता है कि दुखी होने के लिए कोई प्रशिक्षण नहीं चाहिए; तुम दुखी होने के लिए ही पैदा हु हो। तो फिर आनंद के लिए प्रशिक्षण क्यों चाहिए? दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यदि तुम बिना किसी प्रशिक्षण के दुखी हो सकते हो, तो तुम आनंदित भी हो सकते हो बिना प्रशिक्षण के ही स्वाभाविक रहो, निर्मुक्त और बस अनुभव करो चीजों को और प्रतीक्षा मत करो - आरंभ कर दो। यदि तुम्हें लगता भी हो कि तुम नाचने का सही ढंग नहीं जानते, तो भी शुरू कर दो नर्तन |
मैं नहीं कह रहा हूं कि नर्तन तुम्हारी कला होने वाली है। कला के लिए प्रशिक्षण की जरूरत पड़ सकती है। मैं इतना ही कह रहा हूं कि नर्तन केवल एक दृष्टिकोण है। सही ढंग न जानते हु भी तुम नृत्य कर सकते हो। और यदि तुम नृत्य कर सको, तो कौन परवाह करता है। सही पदसंचालन की ! नृत्य स्वयं में पर्याप्त होता है। वह तुम्हारी ऊर्जा का अतिरिक्त उमडाव होता है। यदि वह स्वयं ही कला बन जाता है तो ठीक बात है; यदि वह नहीं बनता, तो भी ठीक है। वह पर्याप्त होता है स्वयं में, पर्याप्त से ज्यादा किसी और चीज की जरूरत नहीं है।
इसलिए मत कहना मुझसे, आप चेतना के शिखर पर हैं।' तुम कहां हो? तुम क्या सोचते हो कि कहां हो? तुम्हारी घाटी तुम्हारे स्वप्नों में है। तुम्हारा अंधकार है क्योंकि तुम्हारी आंखें बंद हैं, अन्यथा तुम वहीं हो जहां मैं हूं। ऐसा नहीं है कि तुम घाटी में हो और में शिखर पर हूं। मैं शिखर पर हूं और तुम भी शिखर पर हो लेकिन तुम घाटी का स्वप्न देखते हो। मैं घाटी का स्वप्न देखते हो मैं पूना में रहता हूं तुम भी पूना रहते हो। लेकिन जब तुम सो जाते हो, तो तुम स्वप्न देखने लगते लंदन के और न्यूयार्क के और कलकत्ता के, और तुम घूम आते हजारों जगह मैं कहीं नहीं जाता; अपनी नींद में भी, मैं पूना में होता हूं। लेकिन तुम घूमते रहते हो।