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तुम उसी शिखर पर हो जहां कि मैं हूं बस बात यही है कि तुम्हारी आंखें बंद हैं। तुम कहते, 'बहुत अंधेरा है!' मैं बात करता प्रकाश की और तुम कहते, आप जरूर कहीं और होंगे, किसी ऊंचे शिखर पर हम अंधकार में जीने वाले साधारण लोग हैं।' लेकिन मैं देख सकता हूं कि तुम उसी शिखर पर बैठे हो आंखें बंद किए हुए तुम्हें तुम्हारी नींद में से बाहर ला पटकना है, झटका देकर और तब तुम देखोगे कि घाटी का कभी अस्तित्व ही न था। अंधकार वहां नहीं था, केवल तुम्हारी ही आंखें बंद थीं। झेन गुरु ठीक करते हैं। वे कोई न कोई लट्ठनुमा चीज लिए रहते हैं और वे पीटते हैं अपने शिष्यों को और ऐसा बहुत बार हुआ है कि जब वह लह पड़ रहा होता है शिष्य के सिर पर तो अचानक वह अपनी आंखें खोल देता है और हंसने लगता है। वह कभी नहीं जान पाया था कि वह उसी शिखर पर है या जो कि वह देख रहा था एक स्वप्न था।
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जाग जाओ। और यदि तुम जाग जाना चाहते हो, तो उत्सव बहुत ज्यादा मदद देगा। जब मैं कहत 'उत्सव मनाओ तो उससे मेरा मतलब क्या होता है? मेरा मतलब है कि जो कुछ तुम करते हो, उसे कर्तव्य की भाति मत करना, उसे तुम्हारे प्रेम के कारण करना, उसे बोझ की भांति मत करना, उसे करना उत्सव की भांति। तुम ऐसे खाना खा सकते हो जैसे कि वह तुम्हारा कर्तव्य हो उदास, बुझे हुए, मुरदा, असंवेदनशील तुम भोजन तुम्हारे भीतर फेंक सकते हो बिना कभी चखे ही, बिना कभी उसे
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महसूस किए ही यह जीवन है उसे पूरा जीओ उसके प्रति इतने असंवेदनशील मत होओ। भारत के लोगों ने कहां है, 'अन्न ब्रह्म, अन्न ब्रह्म है। यह उत्सव है: तुम भोजन कर रहे हो ब्रह्म का, म ईश्वर को खा रहे हो भोजन के द्वारा, क्योंकि केवल ईश्वर अस्तित्व रखता है। जब तुम फव्वारे के नीचे स्नान कर रहे होते हो, तो वह ईश्वर ही बरस रहा होता है क्योंकि केवल ईश्वर का अस्तित्व है। जब तुम सुबह की सैर को जाते, तो वह ईश्वर ही होता है सैर के समय । और वह हवा का झोंका भी ईश्वर है, और वे पेडू भी ईश्वर हैं। हर चीज इतनी दिव्य है, कैसे तुम हो सकते हो उदास, मुरदा और बुझे हुए; जीवन में ऐसे चल फिर रहे हो जैसे कि तुम कोई बोझा ढो रहे हो।
जब मैं कहता हूं, 'उत्सव मनाओ', तो मेरा मतलब होता है कि हर चीज के प्रति और ज्यादा संवेदनशील हो जाओ। जीवन में नृत्य एक अलग बात नहीं होनी चाहिए। सारा जीवन ही एक नृत्य हो जाना चाहिए; उसे होना ही चाहिए नृत्य । तुम जा सकते हो सैर पर और कर सकते हो नृत्य ।
जीवन को तुममें प्रवेश करने दो, ज्यादा खुले हो जाओ और ज्यादा संवेदनशील ज्यादा महसूस करो, ज्यादा अनुभूतिशील होओ। ऐसी अपूर्वताओं से भरी हुई छोटी-छोटी चीजें चारों ओर पड़ी हुई हैं। जरा देखना एक छोटे बच्चे को छोड़ दो उसे बगीचे में और बस देखो वही होना चाहिए तुम्हारा ढंग भी । इतना अदभुत, विस्मय से भरपूर इधर तितली को पकड़ने को दौड़ रहा, तो उधर किसी फूल को लेने भाग रहा होता, कीचड़ से खेल रहा होता, रेत पर लोट-पोट रहा होता। हर तरफ से दिव्यता छू रह होती है बच्चे को