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जानते थे कि तुम प्रतिमाएं बना सकते हो, आदर्श बना सकते हो, इसी 'बुद्ध' शब्द में से ही। और फिर पहले तो बुद्ध हो जाने की प्रतीक्षा करोगे तुम जन्मों-जन्मों तक और फिर तुम उत्सव मनाओगे! वैसा कभी होने वाला नहीं।
एक झेन फकीर, लिंची, कहां करता था अपने शिष्यों से, 'जब तुम ध्यान में उतरो, तो सदा स्मरण रखना कि अगर बुद्ध मिल जाएं इस मार्ग में, तो तुरंत काट देना उन्हें दो में! एक क्षण को न आने
देना उन्हें। वरना वे अधिकार बना लेंगे तुम पर और वे एक रुकावट बन जाएंगे।' शिष्य ने पूछा, 'लेकिन मैं जब ध्यान करता हूं बुद्ध आ जाते हैं,..... और बुद्ध आते हैं बौद्धों के पास, जैसे कि जीसस आते हैं ईसाइयों के पास, असली बुद्ध नहीं, वह कहीं हैं नहीं जो कि मिलें..... 'तो कैसे मैं काटू उनको? कहां से मैं पाऊं तलवार?' गुरु ने कहा, 'तुम्हें तुम्हारे बुद्ध कहां से मिले-कल्पना से ही न? तलवार भी ले आओ वहीं से, काट दो बुद्ध को दो भागों में और बढ़ जाओ आगे।'
यह स्मरण रहे कि बुद्धों के वचन, बुद्ध और उनके सभी वचन, एक सीधे-सरल वाक्य में, एक सूत्र में उतारे जा सकते हैं और वह वाक्य है 'तुम वही हो जो तुम हो सकते हो।' हो सकता है बहुत से जन्म लग जाएं तुम्हें यह जानने में; वह तुम्हारे निश्चय करने की बात है। लेकिन यदि तुम जाग जाते हो, तो एक पल भी नहीं गंवाया जाता।
'तुम वही हो', 'तत्त्वमसि श्वेतकेतु। तुम पहले से ही वही हो, कुछ हो जाने की कोई जरूरत नहीं। होना, कुछ होने की कोशिश ही भ्रामक है। तुम हो, तुम्हें कुछ होना नहीं है। लेकिन धर्मोपदेशक तुमसे कहते हैं कि तुम साधारण हो और वे तुममें इच्छा जगा देते हैं असाधारण होने की। वे तुम्हें हीन कर देते
और इच्छा जगा देते उच्चतर होने की। वे बना देते हैं हीन- भावना और तब तुम उनकी पकड़ में होते हो। तब वे तुम्हें सिखाते हैं कि कैसे उच्चतर होना है। पहले वे तुम्हारी निंदा करते हैं, तुम्हारे भीतर अपराध जगा देते हैं और फिर वे तुम्हें राह दिखाते हैं पुण्यात्मा होने की।
मेरे साथ तुम सचमुच ही कठिनाई में पड़ोगे। क्योंकि तुम्हारा मन तो ऐसा ही होना चाहेगा, क्योंकि यह बात तुम्हें समय देती है और मैं तुम्हें समय नहीं देता। मैं कहता हूं तुम वह हो ही। हर चीज तैयार है। उत्सव की शुरुआत करो, उसका उत्सव मनाओ। तुम्हारा मन कहता है, लेकिन मुझे तो तैयार होना है।
थोड़े समय की जरूरत है।' इसीलिए, इस स्थगन में उपदेशक आ जाते हैं, इस अंतराल में वे प्रवेश कर जाते हैं तुम्हारे अंतस में और तुम्हें नष्ट कर देते हैं। वे कहते, 'ही, समय की तो जरूरत है। कैसे तुम बिलकुल अभी उत्सव मना सकते हो? तैयारी करो, प्रशिक्षित करो स्वयं को। बहुत सारी चीजें बाहर हटा देनी हैं, बहुत सारी चीजों को सुधारना है। तुम्हें चाहिए एक लंबा प्रशिक्षण और अनुशासन। इसमें बहुत से जन्म लग सकते हैं-लंबे प्रशिक्षण और अनुशासन के। बहुत सारे जन्म लग सकते हैं और केवल तभी तुम उत्सव मना पाओगे। बिलकुल अभी कैसे उत्सव मना सकते हो तुम?' वे तुम्हें जंचते हैं,