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दुख उत्पन्न होने के कारण हैं जागरूकता का अभाव अहंकार मोह घृणा जीवन से चिपके रहना और मृत्यु भय ।
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चाहे वे प्रसुप्तता की क्षीणता की प्रत्यावर्तन की या फैलाव की अवस्थाओं में हो दुख के दूसरे सभी कारण क्रियान्वित होते हैं जागरूकता के अभाव द्वारा ही
दुख के कारणों के बहुत से रूप हो सकते हैं; वे बीजों के रूप में हो सकते हैं। तुम अपना दुख उठाए चल सकते हो बीज के रूप में वह प्रसुप्त हो सकता है, तुम्हें इसका होश न हो, लेकिन किसी एक खास स्थिति में, यदि भूमि ठीक होती है और बीज पानी और धूप पा सकता है, तो वह प्रस्फुटित हो जाएगा। तो कई बार वर्षों तक तुम अनुभव करते कि तुम्हें कोई लालच नहीं और अचानक एक दिन जब ठीक अवसर आ बनता है, तो लालच मौजूद हो जाता है तब बीज बहुत ही क्षीण रूप में होते हैं, जिनका कि तुम्हें कुछ पता ही नहीं होता, इतने क्षीण कि जब तक तुम स्वयं के भीतर गहराई से नहीं खोजते, तुम नहीं जान पाओगे कि वे वहा है या वे होते होंगे प्रत्यावर्तित रूप में कई बार तुम सुख अनुभव करते हो और कई बार तुम दुख अनुभव करते हो।
प्रेम मैं तुम सुख अनुभव करते हो, घृणा में तुम दुख अनुभव करते हो, लेकिन प्रेम और घृणा एक ही ऊर्जा की बारी-बारी से चली आने वाली दो घटनाएं हैं। कई बार वे होंगी उनके अपने संपूर्ण रूप में जब तुम उदास - निराश होते हो, इतने ज्यादा निराश कि तुम आत्महत्या कर लेना चाहते हो; या कई बार तुम इतने खुश होते हो कि तुम खुशी के मारे पागल होने जैसा अनुभव करते हो। इन सारे रूपों पर ध्यान करना होता है- क्योंकि पतंजलि कहते हैं, 'ये सारे रूप अस्तित्व रखते हैं अजागरूक होने से; तुम जागरूक नहीं होते।'
पहले तो होश रखो सतही घटना का: लोभ, क्रोध, घृणा, फिर और गहरे जाओ, और तुम अनुभव कर पाओगे बार-बार दोहरायी जाने वाली घटना को दोनों जुड़ी होती हैं जरा और गहरे जाओ, ज्यादा सचेत होओ, और तुम अनुभव करोगे बहुत क्षीण घटना तुम्हारे भीतर है, छाया की भांति है, लेकिन तो भी किसी भी समय वह ठोस रूप पा सकती है। तो ऐसा घटता है एक धार्मिक आदमी के साथ - कि एक सुंदर स्त्री आती है और सारी पावनता तिरोहित हो जाती है; एक क्षण में ही। वह वहां थी क्षीण रूप में या वह मौजूद रह सकती है बीज के रूप में बीज रूप को जान लेना सबसे ज्यादा मुश्किल बात है क्योंकि वह प्रस्फुटित नहीं हुआ होता। इसके लिए चाहिए पूरा होश ।
और पतंजलि की तो संपूर्ण विधि ही है जागरूकता की : ज्यादा और ज्यादा जागरूक हो जाओ। तुम ज्यादा जागरूक हो जाओगे यदि तुम सहज-संयमी हो जाते हो, सहज-सरल हो जाते हो तुम ज्यादा होश पा जाओगे और स्व-स्मरण संभव हो जाएगा। और स्व-स्मरण से अहं गिर जाता है और व्यक्ति समर्पित अनुभव करता है और समर्पित होना सम्यक मार्ग पर होना है।