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देता है। मैं तुम्हें सिखाता हूं आनंदित होना; मैं तुम्हें सिखाता हूं उत्सवपूर्ण होना। मैं तुम्हें उत्सव मनाने के अतिरिक्त और कुछ नहीं सिखाता। केवल एक बात याद रखना तुम्हारा उत्सव किसी दूसरे के लिए नुकसान देने वाला नही होना चाहिए, बस इतना ही।
अहंकार की ही है समस्या। यदि तुम जीवन को आनंद के रूप में लेते हो, और किसी त्यौहार की भांति इसका उत्सव मनाते हो, तो तुम्हारा अहंकार तिरोहित हो जाएगा। अहंकार केवल तभी बना रह सकता है, जब तुम गंभीर होते हो। बच्चे की भांति होते हो, तब अहंकार तिरोहित हो जाता है। तो तुम दुखी से लगते हो, तुम तन कर चलते हो; तुम कुछ बहुत गंभीर बात कर रहे जो कि दूसरा कोई और नहीं कर रहा: सारे संसार को सुधारने में मदद देने की कोशिश कर रहे हो तुम। तुम सारे संसार का बोझ ढोते हो अपने कंधों पर। हर कोई अनैतिक है; केवल तुम्ही हो नैतिक! हर कोई पाप कर रहा है, केवल तुम्हीं हो पुण्यात्मा! तब अहंकार बहुत अच्छा- अच्छा अनुभव करता है।
उत्सवमयी भावदशा में अहंकार जीवित नहीं रह सकता। यदि उत्सव तुम्हारे अस्तित्व की ही आबोहवा बन जाता है तो अहंकार मिट जाएगा। कैसे तुम बनाए रख सकते हो अपना अहंकार, जब तुम हंस रहे होते हो, नाच रहे होते हो, आनंद मना रहे होते हो? ऐसा कठिन होता है। तुम बनाए रख सकते हो अपने अहंकार को जबकि तुम शीर्षासन कर रहे होते हो, सिर के बल खड़े हुए होते हो, या कि कठिन, मूढ़ता- भरी मुद्राएं बना रहे होते हो। तब तुम बनाए रख सकते हो अहंकार को, तुम एक महान योगी हो! या चारों ओर से दूसरे सारे मुर्दा शरीरों के साथ मंदिर में या चर्च में बैठ कर, तुम स्वयं को अनुभव कर सकते हो बहुत, बहुत महान, उच्च।
खयाल में ले लेना यह बात, मेरा संन्यास इस प्रकार के लोगों के लिए नहीं है, लेकिन तो भी आ जाते हैं वे। आने में कुछ गलत भी नहीं। या तो वे परिवर्तित हो जाएंगे, या फिर उन्हें चले जाना होगा। उनकी फिक्र मत करो। मैं आश्वासन देता हूं तुम्हें कि मैं गंभीर नहीं हूं। मैं ईमानदार हूं पर गंभीर नहीं।
ईमानदारी पूरी तरह से एक अलग ही गुणवत्ता है। गंभीरता एक रोग ही है अहंकार का, और ईमानदारी एक गुणवत्ता है हृदय की। ईमानदार होने का अर्थ है सच्चे होना, गंभीर होना नहीं। ईमानदार होने का अर्थ है प्रामाणिक होना। जो कुछ भी कर रहे होते हो, तुम उसे किसी कर्तव्य की भांति नहीं कर रहे होते हो, बल्कि प्रेम की भांति कर रहे होते हो। संन्यास कोई तुम्हारा कर्तव्य नहीं है, वह है तुम्हारा प्रेम। यदि तुम लगा देते हो छलांग, तो तुम लगाते हो तुम्हारे प्रेम के कारण, तुम्हारी प्रामाणिकता के कारण। तुम ईमानदार रहोगे उसके प्रति, पर गंभीर नहीं।
गंभीरता उदास होती है। ईमानदारी प्रफुल्ल होती है। एक ईमानदार व्यक्ति सदा प्रफुल्ल रहता है। केवल दिखावटी व्यक्ति उदास होता है, क्योंकि वह बड़ी झंझट में पड़ जाता है। यदि तुम दिखावटी होते हो, तो एक दिखावट तुम्हें ले जाएगी दूसरी दिखावट में। यदि तुम निर्भर करते हो एक झूठी बात