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61, एक बार मैंने कहा था कि यदि इसकी आवश्यकता हुई तो मैं आऊंगा वापस। लेकिन अब मैं
कहता हूं कि ऐसा असंभव है। अत: कृपा करना, थोड़ी जल्दी करना। मेरे फिर से आने की प्रतीक्षा मत करना। मैं यहां हूं केवल थोड़े-से और समय के लिए ही। यदि तुम सचमुच ही सच्चे हो तो जल्दी करना, स्थगित मत करना। एक बार मैंने कहां था वैसा, लेकिन मैंने कहां था उन लोगों से, जो उस क्षण तैयार न थे। मैं सदा ही प्रत्युत्तर देता रहा हूं; मैंने ऐसा कहां था उन लोगों से जो कि तैयार न थे। यदि मैंने उनसे कहां होता कि मैं नहीं आ रहा हू तो उन्होंने एकदम गिरा ही दी होती सारी खोज। उन्होंने सोच लिया होता कि, 'फिर यह बात संभव ही नहीं है। मैं ऐसा एक जन्म में नहीं कर सकता, और वे वापस नहीं आ रहे हैं, तो बेहतर है कि शुरू ही न करना। एक जन्म में उपलब्ध होने के लिए यह एक बहुत बड़ी चीज है।' लेकिन अब मैं तुमसे कहता हूं कि मैं यहां और नहीं आ रहा; वैसा संभव नहीं। मुझे लग रहा है कि अब तुम तैयार हो इसे समझने के लिए, और गति बढ़ा देने के लिए।
तुम यात्रा आरंभ कर ही चुके हो। किसी भी घड़ी, यदि तुम गति बढ़ा देते हो, तो तुम पहुंच सकते हो परम सत्य तक। किसी घड़ी संभव है ऐसा। अब स्थगित करना खतरनाक होगा। यह सोचकर कि मैं फिर आऊंगा, तुम्हारा मन विश्राम कर सकता है और स्थगित कर सकता है बात को। अब मैं कहता हूं मैं नहीं आ रहा हूं।
एक कथा कहूंगा मैं तुमसे। ऐसा हुआ एक बार कि मुल्ला नसरुद्दीन कहता था अपने बेटे से, 'मैं जंगल में गया शिकार करने और न केवल एक, दस शेर अकस्मात कूद पड़े मेरे ऊपर।' वह लड़का
बोला, ठहरो पापा। पिछले साल तो आपने कहां था पांच शेर, और इस साल आप कहते हैं कि दस शेर।' मूल्ला नसरुद्दीन ने कहा, 'ही, पिछले साल तुम पर्याप्त रूप से प्रौढ़ न थे, और तुम बहुत डर गए होते दस शेरों से। अब मैं तुम्हें सच्ची बात बतलाता हूं। तुम विकसित हो गये हो और यही मैं कहता हं तुमसे।' पहले मैंने तुमसे कहां था कि मैं आऊंगा। क्योंकि तुम पर्याप्त रूप से विकसित न थे। लेकिन अब तुम थोड़े विकसित हो गए हो, और मैं तुम्हें बतला सकता हूं सच्ची बात। बहुत बार मुझे कहनी पड़ती हैं झूठी बातें तुम्हारे ही कारण, क्योंकि तुम नहीं समझ सकोगे सच को। जितना तुम विकसित होते हो, उतना ज्यादा मैं गिरा सकता हूं झूठी बातो को और उतना ज्यादा मैं हो सकता हूं सच। जब तुम सचमच। ही विकसित हो जाते हो, तब मैं तुम्हें बताऊंगा वास्तविक सच। तब झूठ बोलने की कोई आवश्यकता न रहेगी यदि तुम विकसित नहीं होते, तब सत्य विनाशकारी होगा।
तुम्हें असत्य की आवश्यकता है उसी भाति जैसे कि बच्चों को आवश्यकता होती खिलौनों की। खिलोने झूठी बातें हैं। तुम्हें असत्य की जरूरत होती है, यदि तुम विकसित नहीं होते। और यदि करुणा होती है, तब वह व्यक्ति जिसके पास गहरी करुणा होती है वह चिंतित नहीं होता इस बारे में कि वह झूठ बोलता है या कि सच। उसका पूरा अस्तित्व तुम्हारी मदद करने को ही होता है, लाभ पहुंचाने को होता