________________
है, तुम्हें आशीष देने को होता है। सारे बुद्ध झूठ बोलते हैं। उन्हें बोलना पड़ता है, क्योंकि इतने ज्यादा करूणावान होते हैं वे। और कोई बुद्ध परम सत्य को नहीं बतला सकता, क्योंकि किसको कहेगा वह इसे? केवल किसी दूसरे बुद्ध से ही कहां जा सकता है इसे, लेकिन किसी दूसरे बुद्ध को इसकी। अवश्यकता नहीं होगी।
झूठी बातो के द्वारा धीरे- धीरे सद्गुरु तुम्हें ले आता है प्रकाश की ओर। तुम्हारा हाथ थामकर कदम-दर-कदम, उसे तुम्हारी मदद करनी पड़ती है प्रकाश की ओर जाने में। संपूर्ण सत्य तो बहुत ज्यादा हो जाएगा। तुम एकदम धक्का खा सकते हो, बिखर सकते हो। संपूर्ण सत्य को तुम अपने में समा नहीं सकते; वह विनाशकारी हो जाएगा। केवल झूठ द्वारा ही तुम्हें लाया जा सकता है मंदिर के
द्वार तक, और केवल द्वार पर ही तुम्हें दिया जा सकता है संपूर्ण सत्य, केवल तभी समझोगे तुम। तब तुम समझोगे कि वे तुमसे झूठ क्यों बोले। न ही केवल समझोगे तुम, तुम अनुगृहीत होओगे उनके प्रति।
आज इतना ही।
प्रवचन 31 - सहजता-स्वाध्याय–विसर्जन
योगसूत्रः
(साधनपाद)
तप:स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि क्रियायोगः।। 1//
क्रियायोग एक, प्रायोगिक, प्राथमिक योग है और वह संघटित हुआ है- सहज संयम (तप), स्वाध्याय और ईश्वर के प्रति समर्पण से।
'समाधिभावनार्थ: क्लेउशतनकरणार्थश्च।। 2।।