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जाएंगे। जितनी जल्दी वे जाएं, उतना बेहतर। लेकिन यह होता है यह सोच कर कि मैं धार्मिक हूं पुराने ढंग के धार्मिक लोग भी कई बार आ जाते हैं मेरे पास, और एक बार वे आ जाते हैं तो वे उनके अपने मन ले आते हैं उनके साथ, और वे यहां भी गंभीर रहने की कोशिश करते हैं।
एक आदमी आया मेरे पास, एक का आदमी। वह एक बहुत प्रसिद्ध भारतीय नेता था। एक बार उसने शिविर में भाग लिया था, और उसने देख लिया कुछ संन्यासियों को ताश खेलते हुए। तुरंत वह चला आया मेरे पास और कहने लगा, 'यह तो बहुत गलत हुआ। संन्यासी ताश खेलते हैं?' मैं बोला, 'क्या गलत हुआ है इसमें? ताश के पत्ते सुंदर हैं, और वे किसी को कोई हानि नहीं पहुंचा रहे हैं। वे तो बस आनंद मना रहे हैं ताश खेलने का।' यह आदमी एक राजनीतिज्ञ था, और वह राजनीति में ताश खेल रहा था और जुआ खेल रहा था, पर तो भी इसे वह नहीं समझ सकता था। लोगों के ताश खेलने की बात सीधी-साफ है, वे उत्सव भर मना रहे हैं इस क्षण का। और यह आदमी पत्तों के खेल खेलता रहा था अपनी पूरी जिंदगी-भर, बड़े खतरनाक ताश के खेल, आक्रामक; लोगों के सिरों पर पैर रखकर, हर वह चीज करते हुए जो कि एक राजनीतिज्ञ को करनी होती है। लेकिन वह तो स्वयं को धार्मिक समझ रहा था। और बेचारे संन्यासी, केवल ताश के पत्ते खेलने से, निंदित होते हैं वे। वह कहने लगा, 'इसकी तो मैंने कभी अपेक्षा न की थी!' मैंने कहां उससे कि मेरे लिए कुछ गलत नहीं है इसमें।
जब तुम किसी को नुकसान नहीं पहुंचा रहे होते तो कुछ गलत नहीं होता है। जब तुम नुकसान पहुंचाते हो किसी को, तो गलत होती है वह बात। जो चीजें गलत समझी जाती रही हैं। कई बार वे उतनी गलत नहीं होती हैं। उदाहरण के लिए तुम किसी आदमी से कुछ अनाप-शनाप बोल रहे होते हो और कूड़ा-कबाड़ ही फेंक रहे होते हो उसके सिर में और तुम केवल कूड़ा-कबाड़ ही फेंक सकते हो क्योंकि तुम्हारे पास कोई और चीज है नहीं-तुम सोचते हो, वैसा ठीक ही है। लेकिन जो व्यक्ति एक कोने में बैठा है और सिगरेट पी रहा है-वह गलत है? वह कम से कम किसी के सिर के ऊपर या किसी के सिर में कूड़ा तो नहीं फेंक रहा होता है। उसने होठों के लिए एक विकल्प ढूंढ लिया होता है, वह बोलता नहीं है, वह सिगरेट पीता है। हो सकता है वह खुद को नुकसान पहुंचा रहा हो लेकिन वह किसी दूसरे को तो नुकसान नहीं पहुंचा रहा है। हो सकता है वह मूढ़ हो, फिर भी वह पापी नहीं
सदा अपनी सोच इसी दिशा के समानांतर रखने की कोशिश करना कि यदि तुम किसी को नुकसान पहुंचा रहे होते हो, केवल तभी गलत होती है बात। यदि तुम किसी को नुकसान पहुंचा रहे होते होऔर यदि थोड़ा-सा सजग रहते हो, तो इस 'किसी' में तुम भी सम्मिलित होओगे-यदि तुम किसी को नुकसान नहीं पहुंचा रहे, अपने को भी नहीं, तो हर चीज सुंदर है। तब तुम कर सकते हो अपना काम। मेरे लिए संन्यास कोई बड़ी गंभीर बात नहीं है। वस्तुत: यह ठीक विपरीत बात है: यह एक छलांग है अ-गंभीरता में। गंभीरता से तो तुम जी लिए बहुत जन्म। क्या पाया है तुमने? सारा संसार तुम्हें गंभीर होने की, तुम्हारा कर्तव्य पूरा करने की, नैतिक होने की, यह कुछ या वह कुछ करने की सीख