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और मुझे डर है कि वे आएंगे
कर दिया जीसस को, विकृत कर दिया। यदि वे कभी वापस लौटते हैं नहीं इन ईसाइयों के कारण-तो वे उन्हें आने न देंगे चर्चों में।
यही बात मेरे साथ भी संभव है। जब मैं नहीं रहूं तो ये गंभीर लोग खतरनाक हैं। वे बना सकते हैं मालकियत, क्योंकि वे चीजों पर मालकियत जमाने की खोज में सदा ही रहते हैं। वे बन सकते हैं मेरे उत्तराधिकारी और फिर वे नष्ट कर देंगे। इसलिए स्मरण रख लेना यह बात एक अज्ञानी व्यक्ति भी बन सकता है मेरा उत्तराधिकारी, लेकिन हंसने और उत्सव मनाने में उसे सक्षम होना चाहिए। यदि कोई संबोधि को उपलब्ध कर लेने का दावा भी करता हो, तो जरा देख लेना उसके चेहरे की ओर और यदि वह गंभीर हो, तो वह नहीं बनने वाला मेरा उत्तराधिकारी। इसे ही बनने देना कसौटी : एक मूड भी चलेगा, लेकिन उसे हंसने और आनंदित होने और जीवन का उत्सव मनाने में सक्षम होना चाहिए। लेकिन गंभीर लोग सदा ही सत्ता की तलाश में रहते हैं। जो लोग हंस सकते हैं, वे सत्ता के विषय में चिंतित नहीं होते–यही है अड़चन। जीवन इतना अच्छा है कि कौन फिक्र करता है पोप बनने की? सहज-स्वाभाविक लोग, अपने सीधे-सरल तरीकों में प्रसन्न होते हैं, राजनीतियों की चिंता नहीं करते।
जब कोई बुद्ध-पुरुष देह रूप में मिट जाता है, तो फौरन, जो लोग गंभीर होते हैं वे लड़ रहे होते हैं उत्तराधिकारी बनने को। और उन्होंने सदा ही विनाश किया है, क्योंकि वे हैं गलत लोग, लेकिन गलत लोग सदा ही महत्वाकांक्षी होते हैं। केवल सही व्यक्ति ही कभी नहीं होते महत्वाकांक्षी, क्योंकि जीवन इतना कुछ दे रहा है कि महत्वाकांक्षा की कोई जरूरत नहीं-उत्तराधिकारी बनने की, पोप बनने कि कुछ न कुछ बन जाने की। जीवन इतना सुंदर है कि ज्यादा की मांग नहीं की जाती है लेकिन लोग जिनके पास आनंद नहीं, वे चाहते हैं सत्ता; लोग जो चूक गये हैं प्रेम को, वे आनंदित होते हैं मान-सम्मान से; जो लोग किसी न किसी ढंग से चूक गये हैं जीवन के उत्सव को और नृत्य को, वे हो जाना चाहेंगे पोप-ऊंचे, सत्तावान, नियंत्रणकर्ता। सावधान रहना उनसे। वे सदा रहे हैं विनाशकारी, विषदायक लोग। उन्होंने नष्ट कर दिया बुद्ध को, उन्होंने मिटा दिया क्राइस्ट को, उन्होंने मिटा दिया मोहम्मद को और वे सदा रहते हैं आसपास। मुश्किल है उनसे छुटकारा पाना, बहुत बहुत मुश्किल है, क्योंकि वे इतने गंभीर ढंग से हैं मौजूद कि तुम छुटकारा नहीं पा सकते उनसे।
लेकिन मैं आश्वासन देता हूं तुम्हें कि मैं सदा प्रसन्नता और उल्लास की ओर, नृत्य-गान के जीवन की ओर, आनंद की ओर हं, क्योंकि मेरे देखे वही है एकमात्र प्रार्थना। जब तुम प्रसन्न होते हो, प्रसन्नता से आप्लावित होते हो, तो प्रार्थना मौजूद रहती है। और कोई दूसरी प्रार्थना है ही नहीं। अस्तित्व सुनता है केवल तुम्हारी अस्तित्वगत प्रतिसंवेदना को, न कि तुम्हारे शाब्दिक संप्रेषण को। जो तुम कहते हो, महत्व उसका नहीं, बल्कि उसका है जो कि तुम हो।
यदि तुम सचमुच ही अनुभव करते हो कि परमात्मा है, तो उत्सव मनाओ। तब एक भी पल गंवाने में कोई सार नहीं। अपने समग्र अस्तित्व के साथ, यदि तुम अनुभव करते कि परमात्मा है, तो नृत्य करो! क्योंकि केवल जब तुम नृत्य करते हो और गाते हो और तुम प्रसन्न होते हो, या यदि तुम बैठे भी