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द्वार खुलता है शाश्वत का। बीज जल जाता है। इच्छा के गिरने के साथ बीज तिरोहित हो जाता है अपने से ही। वह निर्मित हुआ था इच्छा के द्वारा।
तीसरा प्रश्न :
अपेक्षाकृत नए संन्यासी के रूप में थोड़ा चिंतित हूं आपके आस-पास के उन बहुत गंभीर चिंताग्रस्त दिखते संन्यासियों के बारे में क्या आप इस विषय में आश्वस्त कर सकते हैं?
हा, बहुत सारी चीजें समझ लेनी हैं। पहली, 'धार्मिक' व्यक्ति सदा गंभीर होते हैं। मैं धार्मिक व्यक्ति
नहीं हूं, लेकिन बहुत सारे धार्मिक व्यक्ति, मुझे गलत समझ आ पहुंचते हैं मेरे पास। धार्मिक व्यक्ति सदा गंभीर रहते हैं, वे बीमार होते हैं। वे हताश होते हैं जीवन के प्रति, इतने हताश, इतनी पूरी तरह से असफल कि उन्होंने खो दी होती है आनंद मनाने की क्षमता। जीवन में उन्हें पीड़ा के सिवाय और कुछ नहीं मिला है। जीवन में वे कभी उत्सव मनाने के योग्य नहीं रहे। जीवन की हताशा के कारण वे धार्मिक बन गए हैं, फिर वे होते हैं गंभीर। उनका ऐसा रवैया होता है कि वे कोई बहुत बड़ी चीज कर रहे हैं। वे कोशिश कर रहे होते हैं अपने अहंकार को सांत्वना देने की तम शायद असफल हो गए हो जीवन में, लेकिन फिर भी तुम सफल हो रहे हो धर्म में। तम शायद असफल हो गए हो बाहरी जीवन में, लेकिन आंतरिक जीवन में तुम हो गए हो साक्षात आदर्श रूप! वस्तुओं के संसार में असफल हुए होओगे तुम, लेकिन तुम्हारी कुंडलिनी जाग्रत हो रही है! फिर वे क्षतिपूर्ति करते हैं निंदात्मक दृष्टि से दूसरों को देखने के द्वारा।'तुम से ज्यादा पवित्र हं? वाली दृष्टि होती है उनकी और सारे पापी होते हैं। केवल वे ही बचने वाले हैं, दूसरा हर कोई नरक में फेंक दिया जाने वाला है। इन धार्मिक लोगों ने नरक निर्मित कर दिया है दूसरों के लिए, और अपने लिए भी। वे जी रहे हैं एक प्रतिकारी जीवन। यह वास्तविक नहीं है, बल्कि काल्पनिक है। ये लोग गंभीर होंगे।
मेरा उनसे कुछ लेना-देना नहीं है। लेकिन यह सोचकर कि मैं भी उसी प्रकार का धार्मिक आदमी हूं कई बार वे मेरे साथ आ बंधते हैं। मैं तो पूरी तरह ही अलग तरह का धार्मिक व्यक्ति हूं यदि तुम मुझे किसी तरह धार्मिक कह सकते हो, तो मेरे लिए धर्म एक आनंद है। मेरे लिए धार्मिकता एक उत्सव है। मैं धर्म को कहता हूं- 'उत्सवमय आयाम।' वह ऐसे धार्मिक व्यक्तियों के लिए नहीं है, गंभीर लोगों के लिए नहीं है। गंभीर लोगों के लिए मनसचिकित्सा होती है। वे बीमार होते हैं, और वे किसी और को नहीं, बल्कि स्वयं को ही धोखा दे रहे होते हैं।