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जो यहां हूं, संपूर्ण नहीं हैं। मेरे जन्म लेने से पहले मैं था, और मैं रहूंगा मेरे मरने के बाद, तो कैसे -भर होगा, एक पृष्ठ-आत्मकथा नहीं। एक पृष्ठ तो बिलकुल व्यर्थ होता है और संदर्भरहित होता है, क्योंकि दूसरे पृष्ठ मौजूद न होंगे।
लिखूं? वह एक टुकड़ा
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कुछ मित्र आते हैं मेरे पास और वे भी कहते हैं, 'क्यों नहीं? आपको लिखना चाहिए कुछ अपने बारे मैं मैं जानता हूं मिस्टर इकहांर्ट की कठिनाई वैसा संभव नहीं, क्योंकि कहां से करना प्रारंभ? हर आरंभ मनमाना होगा और झूठा होगा; और कहां करना अंतर हर अंत मनमाना और झूठा होगा। दो झूठी चीजों के बीच - झूठा आरंभ और झूठा अंत - कैसे बना रह सकता सत्य? वह व्यवस्थित नहीं होगा; वह बात संभव नहीं। योगानंद ने कुछ ऐसा किया है जो कि संभव नहीं उसने कुछ ऐसा किया है, जो एक राजनीतिज्ञ कर सकता है, पर योगी नहीं।
प्रगाढ़ता इतनी ज्यादा हो जाती है कि जब तुम देखते हो एक पत्थर की ओर, उस पत्थर के द्वारा, राहें सरक रही होती हैं संपूर्ण अस्तित्व में पत्थर के द्वारा तुम प्रवेश कर सकते हो उच्चतम रहस्यों में हर कहीं है द्वार, खटखटाओ तुम और हर कहीं स्वीकृत हो जाते हो तुम, स्वागत पाते हो तुम। जहां कहीं से तुम प्रवेश करते हो, तुम प्रविष्ट हो जाते हो अपरिसीम में, क्योंकि सारे द्वार समष्टि के हैं। व्यक्ति हो सकते हैं मौजूद; वे होते हैं द्वारों की भांति । प्रेम करो किसी व्यक्ति को और तुम प्रवेश करते हो अनंतता में, अपरिसीम में जरा देखो फूल की तरफ और खुल जाता है मंदिर। लेट जाओ रेत पर, और रेत का हर कण उतना ही विशाल होता है जितनी कि समष्टि । यही है धर्म का उच्चतर
गणित |
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साधारण गणित तो कहता है कि एक अंश कभी नहीं हो सकता संपूर्ण । यह बात सामान्य गणित के नियमों में से एक है जो चलते हैं विश्वविद्यालयों में अंश कभी नहीं हो सकता है संपूर्ण, और अंश सदा छोटा होता है संपूर्ण से, और अंश कभी ज्यादा बड़ा नहीं हो सकता है संपूर्ण से। ये गणित के साधारण नियम हैं, और हर कोई मान लेगा कि यह ऐसा ही है।
लेकिन फिर है ज्यादा ऊंचा गणित जब तुम बाहर आ जाते हो इंद्रियों के, तो वहा ससार है उच्चतर गणित का और ये हैं सूत्र अंश सदा संपूर्ण होता है, अंश कभी छोटा नहीं होता है संपूर्ण से। और असंगतियों की असंगति तो यह होती है कई बार तो अंश ज्यादा बड़ा होता है संपूर्ण से।
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अब मैं इसे समझा नहीं सकता हूं तुम्हें कोई नहीं व्याख्या कर सकता है इसकी, लेकिन यही है नियम। एक बार तुम बाहर आ जाते हो तुम्हारी कैद से, तो तुम देखोगे कि ऐसी ही हैं चीजें। एक पत्थर एक अंश है, एक बहुत छोटा अंश, लेकिन यदि तुम इसकी ओर देखते हो विचारहीन मन से, सीधे-साफ चैतन्य से, तो अचानक पत्थर बन जाता है संपूर्ण क्योंकि केवल एक का ही अस्तित्व होता है, क्योंकि कोई अंश वास्तव में अंश नहीं होता है, या अलग नहीं होता है। अंश निर्भर करता है संपूर्ण पर, संपूर्ण निर्भर करता है अंश पर