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किसी ने पूछा लिंची से, 'आजकल क्या कर रहे हो आप?' वह बोला, 'लकड़ियां काटता हूं, कुएं से पानी लाता हूं -और कुछ नहीं।' लकड़ियां काटना, कुएं से पानी लाना।
जब उसने यह उत्तर दिया तो लिंची जरूर इसी अवस्था में होगा। वह पहुंच गया था अंतिम नियंत्रण पर। अब वहा करने को कुछ न रहा था, इसलिए वह लकड़ी काटता था। सर्दियां आ रही थीं और लकड़ी की जरूरत थी। लोगों ने कहा था कि इन सर्दियों
दी होगी, इसलिए वह लकड़ी काटता था, और निस्संदेह यदि वह प्यासा होता, तो वह पानी ले आता। वह बगीचे को पानी देता। वह एकदम सहज -स्वाभाविक था। कोई खोज नहीं, कोई तलाश नहीं, कहीं जाना नहीं।
यही है अवस्था जहां कि झेनरिन ने कहां था, 'मौन बैठे, कुछ न करते, बसंत आता है और घास बढ़ती है अपने से ही।' इसके बाद, शब्द व्याख्या नहीं कर सकते। आदमी
है निर्विचार तक और फिर प्रतीक्षा करनी है निर्बीज समाधि की। वह आती है अपने से ही, जैसे कि घास बढ़ती है अपने से ही। तब अंतिम नियंत्रण पार कर लिया जाता है, और कोई मौजूद नहीं होता जो उसे पार करे। वह पार करना मात्र होता है। कोई होता नहीं उसे पार करने को, क्योंकि यदि कोई होता है वहां उसे पार करने को, तो नियंत्रण फिर मौजूद हो जाता है। इसलिए तुम कुछ नहीं कर सकते इस विषय में।
इसलिए पतंजलि यहीं समाप्ति करते हैं। यह समाधि है। लेकिन यही समाप्ति होती है समाधियों के अध्याय की। कहने को कुछ और नहीं। वे कुछ नहीं कहते इस बारे में कि कैसे करना है उसे। कोई 'कैसे ' जुड़ा नहीं है उसके साथ। यही है वह स्थल जहां कृष्णमूर्ति बहुत क्रोधित हो उठते हैं, जब कि लोग पूछते हैं, 'कैसे?' कोई सूत्र है नहीं। कोई विधि नहीं, कोई तरकीब नहीं, क्योंकि यदि कोई तरकीब संभव होती यह।, तो नियंत्रण बना रहता। नियंत्रण के पार जाया जाता है, लेकिन कोई होता नहीं जो पार जाता है। विमुक्त और स्वाभाविक बने हुए, लकड़ी काटते और पानी ढोते हुए, शांत बैठे हुए, बसंत आता है और घास बढ़ती है अपने से ही।
तो मत फिक्र लेना निर्बीज समाधि की। केवल सोचना निर्विचार समाधि की, वह समाधि जहां विचार समाप्त हो जाते हैं। वहा तक खोज जारी रहती है। उसके बाद राज्य है अखोज का। जब तुम निर्विचार हो चुके होते हो तभी, केवल तभी तुम समझोगे कि क्या करना होता है। वह सब, जो कुछ किया जा सकता था, तुमने कर लिया।
अंतिम अवरोध वहा है। वह अंतिम अवरोध निर्मित हुआ है तुम्हारी क्रिया द्वारा। अंतिम अवरोध
निर्मित हो जाता है। वह बहत पारदर्शी होता है। यह ऐसे होता है, जैसे कि तम बैठे हए हो कांच की दीवार के पीछे, बहुत सुंदर और शुद्ध कांच और तुम हर चीज इतनी स्पष्टता से देखते हो, जैसे कि बिना दीवार के देख रहे हो, लेकिन दीवार वहा है और यदि तुम कोशिश करते हो उसे पार करने की, तो तुम्हें जोर से चोट लगेगी और पीछे फेंक दिए जाओगे।