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प्रेमी खो जाता है प्रेम में, विषय और विषयी तिरोहित हो जाते हैं, वहां न तो कोई ज्ञाता रहता है और न ही ज्ञात।
जब दूसरे नियंत्रणों पर का यह नियंत्रण पार कर लिया जाता है, तो यह होता है अंतिम नियंत्रण निर्विचार समाधि, वह समाधि जहां विचार समाप्त हो गए। यह होता है अंतिम नियंत्रण। अभी भी तम होते हो, किसी अहंकार की भाति नहीं, बल्कि एक आत्मा की भांति। अभी भी तुम अलग होते हो समष्टि से। तुम केवल एक बड़ी पारदर्शी तरंग होते हो फिर भी तुम होते तो हो। और यदि तुम चिपके रहते हो इससे, तो तुम फिर जन्म लोगे, क्योंकि विभेद को पार नहीं किया गया है। तुम अभी भी अद्वैत को उपलब्ध नहीं हुए हो। द्वैत का बीज अभी भी वहां मौजूद है, और वह बीज प्रस्फुटित होगा नए जन्मों में। जीवन -मृत्य् का चक्र चलता ही चला जाएगा।
'जब सारे नियंत्रणों पर का नियंत्रण पार कर लिया जाता है, तो निर्बीज समाधि फलित होती है '- तब तुम उपलब्ध होते हो उस निर्बीज, निर्विचार समाधि को- 'और उसके साथ ही उपलब्ध होती है - जीवन -मृत्यु से मुक्ति।'
फिर चक्र तुम्हारे लिए थम जाता है। फिर कोई समय न रहा, कोई स्थान न रहा। जीवन और मृत्यू दोनों मिट चुके हैं किसी स्वप्न की भांति। कैसे पार जाना होता है इस अंतिम नियंत्रण के? यह बात कठिनतम होती है। निर्विचार को उपलब्ध करना बहुत कठिन है, लेकिन अंतिम नियंत्रण को गिरा देने की तुलना में तो कुछ भी नहीं है, क्योंकि यह बात बहुत सूक्ष्म होती है। कैसे करना होता है इसे? उस अवस्था में 'कैसे' उतना प्रासंगिक नहीं होता है। व्यक्ति को तो बस जीना होता है, देखना होता है, उत्सव मनाना होता है, निर्मुक्त और सहज-स्वाभाविक बने रहना होता है। यहीं तो तिलोपा अर्थपूर्ण बन जाते हैं।
तिलोपा जैसे लोग झेन गुरु होते हैं, वे इस लक्ष्य की बात कहते हैं : व्यक्ति विमुक्त और सहज - स्वाभाविक होकर जीता है, कुछ नहीं करता नियंत्रण को पार करने के लिए, कुछ नहीं करता। क्योंकि यदि तुम कुछ करते हो, तो फिर वह एक नियंत्रण ही होगा। तम्हारा कछ करना. तम्हारे बिगडात का कारण होगा। विमुक्त और स्वाभाविक बने रहो –सार यही है।
यहीं तो अर्थवान हो जाता है 'दि ऑक्स हर्डिंग' सिरीज का दसवां चित्र। तुम फिर लौट आए होते हो संसार में, और केवल लौट ही नहीं आते फिर से संसार में, बल्कि साथ ही अंगुरी शराब की बोतल लिए हए होते हो! आनंद मनाओ, सहज –साधारण होने का उत्सव मनाओ -यही है अर्थ। अब कछ नहीं किया जा सकता। वह सब जो किया जा सकता था, तुमने किया है। अब तो तुम एकदम विमुक्त और सहज हो जाओ और योग, नियंत्रण, साधना, खोज, तलाश के बारे में हर चीज भूल जाओ। इसकी हर चीज भूल जाओ। अब यदि तुम करते हो कुछ, तो नियंत्रण जारी रहेगा। और नियंत्रण के साथ कोई स्वतंत्रता नहीं होती। तुम्हें प्रतीक्षा करनी होती है, बस विमुक्त और सहज बने हुए ही।