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जब संपूर्ण परिप्रेक्ष्य उपलब्ध हो जाता है, तब पहली बार सूक्ष्मतम अहंकार जो कि अब तक तुमसे चिपका हुआ था, तिरोहित हो जाता है। क्योंकि अस्तित्व बहुत विशाल है-कैसे तुम छोटे-से व्यर्थ के अहंकार से चिपके रह सकते हो?
ऐसा हुआ कि एक बहुत बड़ा अहंकारी, बहुत धनी व्यक्ति, एक राजनेता सुकरात के पास गया। उसके पास एथेन्स का, वास्तव में, सारे यूनान का ही सबसे बड़ा, सबसे सुंदर महल था। और तुम देख सकते हो जब एक अहंकारी चलता है, जब एक अहंकारी कुछ बोलता है, तुम देख सकते हो कि अहंकार वहां सदा ही होता है, हर चीज में घुला-मिला हुआ। वह चला आया था दंभी ढंग से ही। वह पहुंचा सुकरात के पास और दंभपूर्ण ढंग से बोलने लगा उससे। सुकरात बात करता रहा कुछ देर तक और फिर वह बोला, 'जरा ठहरो। अभी पहले तो एक जरूरी बात है जिसे सुलझाना है, फिर हम बात करेंगे।' उसने अपने शिष्य से संसार का नक्शा लाने को कहां। वह धनपति, राजनेता, अहंकारी समझ नहीं सका कि अचानक यह किस प्रकार की बड़ी आवश्यकता उठ खड़ी हुई, और वह नहीं समझ सका कि संसार का नक्शा लाने में क्या अर्थ है। लेकिन जल्दी ही वह जान: गया कि अर्थ था उसमें। सुकरात ने पूछा, 'संसार के इस बड़े नक्शे में यूनान कहां है? – एक छोटी-सी जगह। एथेन्स कहां है? - एक बिंदु मात्र।' फिर सुकरात पूछने लगा, 'कहां है तुम्हारा महल और कहां हो तुम? और यह नक्शा है केवल पृथ्वी का ही, और पृथ्वी तो कुछ भी नहीं। सूर्य आठ गुना ज्यादा बड़ा है और हमारा सूर्य तो सामान्य सूर्य है। लाखों गुना ज्यादा बड़े सूर्य हैं ब्रह्माड में। कहां होगी हमारी पृथ्वी यदि हम अपने सौर-मंडल का नक्शा बनाएं तो? और हमारा सौर -मंडल तो बहत सामान्य सौर मंडल है। लाखों सौर मंडल हैं। कहां होगी हमारी पृथ्वी यदि हम उस आकाश-गंगा (गैलेक्सी) का नक्शा बनाएं जिससे कि हम संबंधित हैं? लाखों -लाखों आकाश-गंगाएं हैं। कहां होगा हमारा सौर-मंडल? क्या स्थान होगा हमारे सूर्य का?'
और अब वैज्ञानिक कहते कि कोई अंत ही नहीं-गैलेक्सियों के पीछे गैलेक्सियां बनी हई हैं, जहां कहीं हम सरकते, वहां कोई अंत नहीं जान पड़ता है। इतनी विशालता में, कैसे तुम चिपके रह सकते हो अहंकार से? वह तो एकदम तिरोहित हो जाता है सुबह की ओस की भांति, जब सूर्योदय होता है। जब विशालता उदित होती है और परिप्रेक्ष्य समग्र हो जाता है, तो तुम्हारा अहंकार बिलकुल तिरोहित हो जाता है ओस -कण की भांति। यह तो उतना भी बड़ा नहीं होता। यह जड़ मूढ़ संदेशवाहकों में से किसी एक के द्वारा दी हुई एक भ्रांत धारणा ही होती है। तुम्हारी इंद्रियों के छोटे छिद्र के कारण, तुलना में तुम बहुत बड़े जान पड़ते हो। जब तुम बाहर आ जाते हो आकाश के नीचे, तो अकस्मात अहंकार तिरोहित हो जाता है। वह एक निर्माण था किसी छिद्र का, क्योंकि बहुत छोटा था छिद्र, और छिद्र द्वारा सारा संसार बहुत छोटा हो जाता है। तुम बहुत बड़े होते हो उसके पीछे। आकाश के नीचे वह बिलकुल मिट ही जाता है।