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मस्तिष्क उसके अर्थ कर देता है। और चौथा वह मदहोश मन-जो कि सोया-सोया हुआ है, तुरंत स्वप्न की शुरुआत कर देता है!
तुम सपनों को निर्मित कर सकते हो। तुम अनजाने में बहुत बार निर्मित करते हो उन्हें। तुम्हारे दोनों हाथ तुम्हारे हृदय पर होते हैं और तुम लेटे हुए होते हो तुम्हारे बिस्तर पर, और तुम अनुभव करते हो कि कोई तुम्हारी छाती पर बैठा हुआ है, कोई भीमकाय राक्षस! जब तुम अपनी आंखें खोलते हो, तो कोई नहीं होता है वहां, तुम्हारे अपने ही हाथ होते हैं, या फिर तकिया होता है।
यही कुछ घट रहा होता है, जब कि तुम जागे हुए होते हो। इससे कुछ अंतर नहीं पड़ता, क्योंकि सारी रचना –प्रक्रिया वैसी ही होती है। चाहे आंखें खुली हों या बंद हों, इससे कुछ अंतर नहीं पड़ता, क्योंकि प्रक्रिया पर कोई नियंत्रण नहीं हो सकता। यदि तुम नियंत्रण करना भी चाहो तो तुम्हें सारी प्रक्रिया में से ही गुजरना पड़ेगा। कैसे तुम नियंत्रण कर सकते हो जब तक कि तुम बाहर न आ सकी और देख न सको कि क्या घट रहा है?
यह संभावना आध्यात्मिकता का संपूर्ण संसार होती है कि अंतिम, चेतना बाहर आ सकती है। सारे रचना-तंत्र को गिरा देना, चीज को सीधे देखना, और 'चीजें तिरोहित हो जाती हैं। इसीलिए हिंदू कहते हैं कि यह संसार सत्य नहीं है और सच्ची समझ वाले के लिए यह तिरोहित हो जाता है। ऐसा नहीं है कि चट्टानें वहां नहीं होंगी और वृक्ष वहा नहीं होंगे। वे होंगे वहां -कुछ ज्यादा ही होंगे। लेकिन वे अब वृक्ष न रहेंगे, चट्टानें न रहेंगी–वे होंगे प्राणमय अस्तित्व। तुम्हारा मन प्राणियों को चीजों में बदल देता है : तुम्हारी पत्नी एक चीज हो जाती है इस्तेमाल करने की, तुम्हारा पति एक अधिकार जमाने की
चीज हो जाता है; तुम्हारा सेवक एक चीज हो जाता शोषित करने की, तुम्हारा बीस एक चीज हो जाता है धोखा देने के लिए। इस सारी मूढ़ता – भरी प्रक्रिया के कारण, मन प्रत्येक चैतन्य प्राणी को बदल देता है चीज में। जब तुम मन के बाहर आ जाते हो और खुले आकाश तले देखते हो, तो अकस्मात कोई जड़ चीज नहीं होती। जड़ चीज-पन तिरोहित हो जाता है।
जब विचार गिर जाते हैं, तो गिरने की दूसरी चीज होती है-वस्तुओं का जडपन। अचानक सारा संसार प्राणियों के अस्तित्व से भर जाता है -सुंदर प्राण –सत्ताएं, परम जीवंत सत्ताएं। क्योंकि वे सभी भाग लेते हैं परमात्मा के परम अस्तित्व में। व्याख्याएं तिरोहित हो जाती हैं -तुम अलग नहीं हो सकते। सारे विभाजन अस्तित्व रखते थे रचना -तंत्र के कारण। अचानक तुम एक वृक्ष को धरती में से उमगते देखते हो, अलग नहीं, आकाश से मिलते हुए-अलग नहीं। हर चीज एक साथ जुड़ी होती है, हर कोई अंश होता हर दूसरे का। सारा संसार चेतना की एक बुनावट बन जाता, भीतर से प्रदीप्त हुई लाखों -लाखों प्रज्वलित चेतनाओं की एक बनावट। हर घर प्रकाशमान होता। शरीर तिरोहित हो जाते