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इसलिए स्त्री को प्रतीक्षा करनी पड़ती है। और यदि वह प्रतीक्षा करती है, तो फिर एक समस्या आ बनती है। यदि वह कोई उतावलापन नहीं दिखाती तो यह बात उदासीनता जैसी जान पड़ती है, और उदासीनता मार सकती है प्रेम को।
प्रेम के लिए उदासीनता से ज्यादा खतरनाक कोई दूसरी चीज नहीं। घृणा भी ठीक है, क्योंकि कम से कम जिस आदमी से तुम घृणा करते हो उसके लिए एक निश्चित प्रकार का संबंध तो होता है तुम्हारे पास। प्रेम बना रह सकता है घृणा होने पर, लेकिन प्रेम नहीं बना रह सकता है उदासीनता के होने से और स्त्री सदा कठिनाई में रहती है, यदि वह पहल करती है तो पुरुष भाग ही निकलता है। कोई पुरुष उस स्त्री को बरदाश्त नहीं कर सकता जो पहल करती हो। इसका अर्थ होता है कि वह अतल शून्यता अपने से तुम्हारे पास आ रही है। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, तुम भाग निकलते हो।
इसी भांति निर्मित होते हैं डॉन जुआन तब वे चलते चले जाते हैं एक स्त्री से दूसरी स्त्री तक। वे जीते हैं पाने और फिर भाग खड़े होने के प्रेम संबंध में, क्योंकि यदि वे ज्यादा वहां रहते हैं, तो वह अगाध शून्य अपने में विलीन कर लेगा उन्हें। डॉन जुआन प्रेमी नहीं होते, बिलकुल नहीं। वे लगते हैं प्रेमियों की भाति क्योंकि वे लगातार क्रियाशील रहते हैं। रोज एक नयी स्त्री! लेकिन वे गहरे भय में जीने वाले लोग हैं। क्योंकि यदि वे बहुत समय तक एक ही स्त्री के साथ रहते हैं, तो गहन आत्मीयता विकसित होगी। वे ज्यादा निकट आ जायेंगे, और कौन जाने क्या घट जाए? इसलिए वे ठहरते हैं केवल कुछ समय के लिए ही और इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, वे भाग निकलते हैं।
अपने जीवन की छोटी-सी अवधि में बायरन ने कई सौ स्त्रियों से प्रेम किया था। वह इसका आदर्श नमूना है – डॉन जुआन का। उसने कभी नहीं जाना प्रेम को कैसे तुम जान सकते हो प्रेम को जब कि तुम सरकते रहते हो एक से दूसरे तक और दूसरे तक और दूसरे तक? प्रेम को आवश्यकता रहती है पकने की। उसे थिर होने के लिए जरूरत होती है समय की, उसे जरूरत होती है भरोसे की। तो स्त्री को सदा मुश्किल रहती है कि क्या करे?' यदि वह अपनी ओर से पहल करती है तो पुरुष भाग जाता है। यदि वह ऐसी बनी रहती है जैसे उसे रस ही नहीं, तब भी पुरुष भाग निकलता है, क्योंकि उसकी दिलचस्पी नहीं ।
उसे चुननी पड़ती है बीच की चीज थोड़ी-सी उत्सुकता और थोड़ी उदासीनता, साथ साथ, एक मिश्रण। और दोनों ही बुरे रूप होते हैं, क्योंकि ये समझौते तुम्हें विकसित न होने देंगे।
समझौता कभी किसी को विकसित नहीं होने देता है। समझौता एक गुणनात्मक, चालाक चीज है वह व्यापार की भांति है, प्रेम की भांति नहीं। जब प्रेमी वास्तव में ही एक-दूसरे से भयभीत नहीं होते और अहंकार के बाहर आ चुके होते हैं, तो वे बड़ी तीव्रता से छलांग लगा देते हैं एक दूसरे में वे इतनी गहराई से छलांग लगाते हैं कि वे परस्पर एक हो जाते हैं। वास्तव में वे एक हो जाते हैं। और