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गुरु जंभाई लेता है तो केवल जंभाई ही होती है वहां। और यदि तुम्हें यकीन नहीं हुआ हो, तो तुम पूछ सकते हो विवेक से, वही होगा प्रमाण! तुम पूछ सकते हो गवाह से!
आज इतना ही।
प्रवचन 29 - निर्विचार समाधि से अंतिम छलांग
योग सूत्र:
(समाधिपाद)
श्रुतानुसानंप्रज्ञाभ्यामन्याबषया विशेषार्थत्वात्।। 41//
निर्विचार समाधि की 'अवस्था में विषय-वस्तु की अनुभूति होती है उसके पूरे परिप्रेक्ष्य में, क्योंकि इस अवस्था में ज्ञान प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त होता है- इंद्रियों को प्रयुक्त किए बिना ही।
तज्ज: संस्कारोउन्यसंस्कारप्रतिबन्धी।। 42 ///
जो प्रत्येक्ष बोध निर्विचार समाधि में उपलब्ध होता है, वह सभी सामान्य बोध संवेदनाओं
के पार का होता है-प्रगाढ़ता में भी और विस्तीर्णता में भी।
तस्यापि निरोधे सर्वनिरोधान्निर्बीज: समाधिः।। 43।।
जब सारे नियंत्रण पार कर लिया जाता है, तो निर्बीज समाधि फलित होती है और उसके साथ ही उपलब्ध होती है-जीवन-मृत्यु से मुक्ति।