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का पूरा ढांचा है। और मैं इस संसार के बाहर चला जाना चाहता हूं। प्रेम ही है वह कारण जिससे कि लोग इसके बाहर नहीं जा सकते हैं। नहीं, कल्पना में भी नहीं।'
रामानुज ने फिर जोर दिया। वे बोले, 'जरा भीतर देखो। कई बार सपनों में प्रेम का विषय प्रकट हुआ होगा।' वह आदमी बोला, 'इसलिए तो मैं ज्यादा सोता नहीं। लेकिन मैं यहां प्रेम सीखने को नहीं हैं, मैं यहां आया हूं प्रार्थना सीखने को।' रामानुज उदास हो गए और वे बोले, 'मैं तुम्हारी मदद नहीं कर सकता, क्योंकि जिस व्यक्ति ने प्रेम को नहीं जाना है, वह कैसे जान सकता है प्रार्थना को?'
प्रार्थना सर्वाधिक सूक्ष्म प्रेम है, सारभूत प्रेम है -जैसे कि देह मिट जाती हो और केवल प्रेम की आत्मा बनी रहती हो, जैसे कि दीया वहां बचता ही न हो, मात्र अग्नि -शिखा रहती हो, जैसे फूल खो जाता है धरती में, लेकिन सुवास बनी रहती है हवा में-वही होती है प्रार्थना। काम- भाव देह है प्रेम की; प्रेम है आत्मा। फिर प्रेम देह है प्रार्थना की; प्रार्थना है आत्मा। तुम बना सकते हो सकेंद्रित वर्तुल। पहला वर्तुल है काम, दूसरा वर्तुल है प्रेम और तीसरा वर्तुल जो कि केंद्र है, वह है प्रार्थना। काम द्वारा तुम दूसरे की देह को खोजते हो, और दूसरे की देह को खोजने के द्वारा तुम खोजते हो तुम्हारी अपनी ही देह को।
वह व्यक्ति जो किसी के साथ काम-संबंधों द्वारा नहीं जुड़ा रहा, उसमें अपनी देह का कोई बोध नहीं ता, क्योंकि कौन देगा तुम्हें बोध? किसी ने तुम्हारी देह को प्रेममय हाथों से नहीं छुआ होता; किसी ने प्रेममय हाथों से तुम्हारी देह को सहलाया नहीं होता, किसी ने तुम्हारी देह को आलिंगनबद्ध नहीं किया होता। कैसे तुम प्रतीति पा सकते हो तुम्हारी देह की? तुम तो हो बस एक प्रेत की भांति। तुम नहीं जानते कहां तुम्हारी देह की समाप्ति है और कहां दूसरे की देह का आरंभ।
केवल एक प्रेमपूर्ण आलिंगन में पहली बार देह एक आकार लेती है। प्रेमिका तुम्हें तुम्हारी देह का आकार देती है। वह तुम्हें एक रूप देती, वह तुम्हें एक आकार देती, वह चारों ओर से तुम्हें घेरे रहती और तुम्हें तुम्हारी देह की पहचान देती है। प्रेमिका के बगैर तुम नहीं जानते तुम्हारा शरीर किस प्रकार का है, तुम्हारे शरीर के मरुस्थल में मरूद्यान कहां है, फूल कहां हैं? कहां तुम्हारी देह सबसे अधिक जीवंत है और कहां मृत है? तुम नहीं जानते। तुम अपरिचित बने रहते हो। कौन देगा तुम्हें वह परिचय? वास्तव में जब तुम प्रेम में पड़ते हो और कोई तुम्हारे शरीर से प्रेम करता है तो पहली बार तुम सजग होते हो अपनी देह के प्रति कि तुम्हारे पास देह है।
प्रेमी एक दूसरे की मदद करते हैं अपने शरीरों को जानने में। काम तुम्हारी मदद करता है दूसरे की देह को समझने में और दूसरे के द्वारा तुम्हारे अपने शरीर की पहचान और अनुभूति पाने में। कामवासना तुम्हें देहधारी बनाती है, शरीर में बद्धमूल करती है, और फिर प्रेम तुम्हें स्वयं का, आत्मा