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भ्रम होता है, क्योंकि कोई सत्य होता है और होता है वह ज्ञान, जो उसने अतीत में एकत्रित किया : उन शब्दों का, शास्त्रों का, शिक्षकों का; वह भी वहां होता है। अपना कुछ तर्क कि क्या गलत है और क्या सही; क्या सत्य है और क्या असत्य; और उसके इंद्रिय-बोध की-आख, कान, नाक की कोई चीज-हर चीज वहां होती, घुली-मिली हई।
यह होती है वह अवस्था, जहां योगी पागल हो सकता है। यदि इस अवस्था में कोई ध्यान रखने वाला नहीं होता, तो पागल हो सकता है योगी, क्योंकि इतने सारे आयाम मिल रहे होते हैं। इतना बड़ा भ्रम होता है और होती है अराजकता। यह ज्यादा बड़ी अराजकता होती है उससे जितनी कि कभी पहले थी, जब कि वह सतह पर था, क्योंकि कुछ नया आ पहुंचा होता है।
केंद्र से अब थोड़ी झलकें आ रही होती हैं उस तक। वह नहीं जान सकता कि क्या यह उस ज्ञान से
आ रही होती हैं, जिसे उसने इकट्ठा कर लिया है शास्त्रों से। कई बार अचानक उसे लगता है, 'अहं ब्रह्मास्मि', मैं ब्रह्म हं। अब वह भेद करने योग्य नहीं होता कि यह उपनषिद से आ रहा है, जिसे वह पढ़ता रहा है, या कि उसके स्वयं से। यह एक बौद्धिक निर्णय होता है। 'मैं संपूर्ण का अंश हूं। संपूर्ण है परमात्मा, तो निस्संदेह मैं हूं परमात्मा। 'वह नहीं बता सकता कि यह एक तर्कसंगत शास्त्रीय सूत्र है या यह आ रहा है इंद्रिय-बोध से।
क्योंकि कई बार जब तुम बहुत शात होते हो और इंद्रियों के द्वार बहुत साफ होते हैं, तो उदित हो जाती है परमात्मा होने की अनुभूइत। संगीत सुनते-सुनते, अचानक तुम फिर मानव-प्राणी ही नहीं रह जाते। यदि तुम्हारे कान तैयार होते हैं और यदि तुम्हारे पास संगीत-बोध होता है, तो अकस्मात तुम उठ जाते हो एक अलग ही तल तक। जिस स्त्री को तुम प्रेम करते हो, उससे संभोग करते हुए अचानक आर्गाज्म के चरम पर, तुम अनुभव करते कि तुम ईश्वर हो गए। ऐसा घट सकता है तर्क के
द्वारा। यह आ रहा हो सकता है उपनिषदों से, शास्त्रों से, जिन्हें तुम पढ़ते रहे हो, या यह आ रहा होता है केंद्र से। और वह व्यक्ति जो मध्य में है, वह नहीं जानता कि यह कहां से आ रहा है। सभी दिशाओं से घट रही होती हैं लाखों चीजें-अनूठी, अज्ञात, ज्ञात। व्यक्ति पड़ सकता है वास्तविक गड़बड़
में।
इसीलिए जरूरत होती है साधक-समुदाय की, जहां कि बहुत लोग काम कर रहे होते हैं। क्योंकि केवल ये ही तीन स्थल नहीं हैं। परिधि और केंद्र के बीच में, बहुत सारे स्थल होते हैं। रहस्य-साधनालय वह होता है, जहां कई तरह के वर्गों के कई लोग साथ -साथ रहते हैं। और शिक्षालय की ही भांति, प्रथम श्रेणी के लोग होते हैं वहां, दवितीय श्रेणी के लोग होते हैं, तृतीय श्रेणी के लोग होते हैं; प्राथमिकशाला माध्यमिकशाला, उच्चशाला और फिर विश्वविद्यालय। एक संपूर्ण रहस्य–विद्यालय होता है : बाल विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालय तक। कोई अस्तित्व रखता है वहां एकदम चरम पर, केंद्र पर, जो कि केंद्र बन जाता है, रहस्य-विदयालय का।