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जब पतंजलि कार्य कर रहे थे इन सूत्रों पर, तो संसार पूर्णतया अलग था। लोग थे 'हैड्स'। विशेष रूप से रेचन की कोई जरूरत नहीं थी। जीवन स्वयं ही एक रेचन था। तब, वे बड़ी आसानी से बैठ सकते थे शात होकर। लेकिन तुम नहीं बैठ सकते। इसीलिए मैं आविष्कार करता रहा हूं रेचक विधियों का। केवल उन्हीं के बाद तुम शाति से बैठ सकते हो, उससे पहले नहीं।
कुछ वर्षों तक रेचक विधियों पर कार्य करने के बाद मैं अनुभव करता हूं कि एक गहन आंतरिक सुव्यवस्था संतुलन और केद्रण मुझ में घट रहा है।
अब झंझट मत खड़ी कर लेना; इसे होने देना। अब वही मन अपनी टाग अड़ा रहा है। मन कहता है, 'ऐसा कैसे घट सकता है? पहले मेरा अराजकता से गजरना जरूरी है। 'यह विचार निर्मित कर सकता है अराजकता का। यही मेरे देखने में आता रहा है : लोग ललकते रहते हैं शाति के लिए, और जब वह घटने लगती है, तो वे विश्वास नहीं कर सकते उस पर। यह इतना अच्छा होता है कि इस पर विश्वास ही नहीं आता। खास करके वे लोग जिन्होंने सदा निंदा की होती है अपनी, वे विश्वास नहीं कर सकते कि वह सब घटित हो रहा है उन्हें। ' असंभव! ऐसा घटा होगा बुद्ध को या कि जीसस को, लेकिन मुझको? नहीं, यह तो संभव नहीं है। 'वे शाति वारा, मौन दवारा, वैसा घटने पर अशात होकर मेरे पास चले आते हैं। 'यह सच है, या कि मैं कल्पना कर रहा है इसकी?' क्यों चिंता करनी? यदि यह कल्पना भी है, तो क्रोध के बारे में कल्पना करने से यह बेहतर है; यह कामवासना के बारे में कल्पना करने से तो बेहतर है।
और मैं कहता हं तुमसे, कोई कल्पना नहीं कर सकता शाति की। कल्पना को जरूरत रहती है किसी रूपाकार की, मौन के पास कोई आकार नहीं होता। कल्पना का अर्थ होता है बिंब में सोचना, और मौन का कोई प्रतिबिंब नहीं होता। तुम कल्पना नहीं कर सकते संबोधि की, सतोरी की, समाधि की, मौन की। नहीं। कल्पना को चाहिए कोई आधार, कोई आकार, और मौन होता है आकारविहीन, अनिर्वचनीय। किसी ने कभी नहीं बनाया इसका कोई चित्र; कोई नहीं बना सकता। किसी ने नहीं गढी इसकी
ता। किसी ने नहीं गढ़ी इसकी कोई मूरत; कोई कर नहीं सकता ऐसा।
तुम मौन की कल्पना नहीं कर सकते। मन चल रहा है चालाकियां। मन तो कहेगा, 'यह जरूर कल्पना ही होगी। ऐसा संभव कैसे हो सकता है तुम्हारे लिए? तुम्हारे जैसा इतना मूढ व्यक्ति और मौन घट रहा है तुमको? जरूर यही होगा कि तुम कल्पना कर रहे हो। ' या, 'इस आदमी रजनीश ने सम्म कर दिया है तुम्हें। कहीं कुछ तुम्हें धोखा हो रहा होगा। 'मत खड़ी कर लेना ऐसी समस्याएं। ऐसे ही जीवन में काफी समस्याएं हैं। जब मौन घट रहा हो, तो उसमें आनंदित होना, उसका उत्सव मनाना। इसका अर्थ हआ कि अराजक शक्तियां बाहर निकाली जा चुकी हैं। मन खेल रहा है अपना अंतिम