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प्रवचन 25 - सूक्ष्मतर समाधियां: निर्वितर्क, सविचार, निर्विचार
दिनांक 5 मार्च, 1975;
श्री रजनीश आश्रम, पूना।
योगसूत्र: (समाधिपाद)
स्मृतिपरिशुद्धौ स्वरूपशून्येवार्थमात्र निर्भासा निर्वितर्का।। 43//
जब स्मृति परिशुद्ध होती है और मन किसी अवरोध के बिना वस्तुओं की यथार्थता देख हू सकता है, तब निर्वितर्क समाधि फलित होती है।
एतयैव सविचार निर्विचार च सूक्ष्मविषय व्याख्याता ।। 44।।
सवितर्क और निर्विचार समाधि का जो स्पष्टीकरण है उसी से समाधि की उच्चतर स्थितियां भी स्पष्ट होती है। लेकिन सविचार और निर्विचार समाधि की इन उच्चतर अवस्थाओं में ध्यान के विषय अधिक सूक्ष्म होते है।
सूक्ष्मविषयत्वं चलिंगपर्यवसानम्।। 45 ।।
इन सूक्ष्म विषयों से संबंधित समाधि का प्रांत सूक्ष्म ऊर्जाओं की निराकर अवस्था तक फैलता है।