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जाता है। यदि तुम कहते हो, मैं जानता हूं शून्य को तो पर्याप्त शून्य नहीं होता; शून्यता का विचार
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वहां रहता है। मन अभी भी काम कर रहा होता है, बहुत, बहुत निष्क्रिय नकारात्मक ढंग से काम कर रहा होता है - लेकिन अभी भी काम तो कर ही रहा है। तुम सजग हो कि वहां शून्यता है। अब यह शून्यता होती क्या है जिसके बारे में तुम सजग होते हो? यह बहुत सूक्ष्म होती है। सर्वाधिक सूक्ष्म, अंतिम होती है; जिसके बाद विषय संपूर्णतया तिरोहित हो जाता है।
अतः जब कभी कोई शिष्य कहता है, मैंने पा लिया है फिर मत लाना इसे मेरे पास नहीं होता।'
झेन गुरु के पास अपनी उपलब्धि सहित बड़ी प्रसन्नता से आता है और शून्यता को तो गुरु कहता है, जाओ और दूर फेंक दो इस शून्यता को यदि तुम सचमुच ही खाली हुए हो तो वहां शून्यता का कोई विचार भी
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ऐसा ही हुआ है सुभूति की उस प्रसिद्ध कथा में। वह वृक्ष तले बैठा हुआ था बिना किसी विचार के, अ-विचार का विचार भी न था। अकस्मात फूल बरस पड़े वह चकित हो गया-क्या घट रहा है?' उसने देखा चारों ओर फूल ही फूल झरते थे आकाश से उसे चकित हुआ देखकर देवताओं ने कहा उससे, 'चकित मत होओ। हमने आज शून्यता पर सबसे बड़ा प्रवचन सुना है तुमने दिया है उसे हम उत्सव मना रहे हैं और हम तुम पर ये फूल बरसा रहे हैं प्रतीक के रूप में, शून्यता पर दिए तुम्हारे प्रवचन पर उत्सव मना रहे हैं और उसका सम्मान कर रहे हैं। सुभूति ने कंधे उचका दिए और बोला, 'मगर मैं तो कुछ बोला ही नहीं।' देवताओं ने कहा, 'ही तुम तो नहीं बोले, और न ही हमने सुना हैयही तो है, शून्यता पर दिया गया सबसे बड़ा प्रवचन ।'
यदि तुम बोलते हो, यदि तुम कहते हो, 'मैं खाली है, तो तुम चूक गए। अ-विचार के विचार तक निर्विचार समाधि होती है, कोई चिंतन-मनन नहीं लेकिन फिर भी अंतिम अंश तो बाकी है; हाथी गुजर गया है दुम रह गयी है, मगर अंतिम अंश और कई बार दुम ज्यादा बड़ी सिद्ध होती है हाथी से, क्योंकि वह बहुत सूक्ष्म होती है। विचारों को फेंक देना आसान है, लेकिन शून्यता को कैसे फेंकें, अ-विचार को कैसे फेंकें? वह बहुत-बहुत सूक्ष्म होता है; उसे कैसे पूरी तरह समझोगे? ऐसा ही हुआ जब झेन गुरु ने शिष्य से कहा, 'जाओ और फेंक दो इस शून्यता को!' शिष्य कहने लगा, पर कैसे फेंकना होगा शून्यता को?' गुरु कहने लगा, 'तो ले जाओ इसे जाओ फेंको इसे पर अपने सिर में शून्यता लेकर मत खड़े रहना मेरे पास कुछ करो इस बारे में।'
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यह बहुत सूक्ष्म होता है। कोई चिपक सकता है इससे लेकिन तब मन ने तुम्हें धोखा दे दिया अंतिम स्थल पर। निन्यानबे प्याइंट नौ प्रतिशत तुम पहुंच चुके; बस आखिरी चरण ही बाकी था। सौ डिग्री पर तो वह संपूर्ण हो चुका होता और तुम तिरोहित हो चुके होते।
अब तक तो पतंजलि कहते हैं कि यह चिंतन - रहित समाधि है - निर्विचार समाधि। यदि तुम उपलब्ध हो चुके होते हो इस समाधि को, तो तुम हो जाओगे बहुत - बहुत प्रसन्न, मौन, शात। तुम भीतर सदा