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निरंतर पोषित होता है। और जब दूसरा वहां होता है, तो तुम स्वयं को नहीं जान सकते; संपूर्ण मन केंद्रित हुआ होता है, दूसरे पर ही। दूसरे को हटा देना होता है, बिलकुल हटा देना होता है जिससे कि तुम्हारे लिए सोचने को कुछ रहे ही नहीं, तुम्हारे लिए तुम्हारा ध्यान देने को कुछ न रहे, कोई जगह ही न हो जहां तम सरक सको।
'विषय के साथ, ' पतंजलि कहते हैं, 'बहुत सारी संभावनाएं होती हैं। तुम विषय के साथ संबंध में जुड़ सकते हो बौद्धिक प्राणी के रूप में; तुम तार्किक रूप से विषय के बारे में सोच सकते हो। तब पतंजलि इसे– नाम देते हैं सवितर्क समाधि। ऐसा बहुत बार घटता है : जब कोई वैज्ञानिक किसी विषय-वस्तु का परीक्षण कर रहा होता है तो वह बिलकुल मौन हो जाता है। वह विषय के साथ इतना तल्लीन होता है कि उसके अंतस आकाश में, उसकी अंतस सत्ता में कोई विचार घुमड़ता ही नहीं। कई बार जब कोई बच्चा अपने खिलौने के साथ खेल रहा होता है, वह इतना तल्लीन हो जाता है कि मन संपूर्णतया, लगभग समाप्त हो जाता है। एक बड़ी गहरी शांति विद्यमान रहती है। विषय तुम्हारा सारा ध्यान थाम लेता है; कोई चीज पीछे नहीं बच रहती। किसी चिंता की संभावना नहीं, कोई तनाव संभव नहीं होता, कोई पीड़ा संभव नहीं होती, क्योंकि तुम समग्र रूप से समाए होते हो विषय में, तुम उतर चुके होते हो विषय में।
ऐसा घटा सुकरात को, वह था वैज्ञानिक, वह था बड़ा दार्शनिक, वह बाहर खड़ा था एक रात। वह एक पूर्णिमा की रात थी और वह देख रहा था चांद की ओर। वह इतना तल्लीन हो गया-वह जरूर उसी में इबा होगा जिसे पतंजलि कहते हैं सवितर्क समाधि। जो सर्वाधिक तार्किक व्यक्ति हए हैं, वह उनमें से ही एक था; सर्वाधिक बौद्धिक मन जो होते हैं उनमें से एक; वह बुद्धि संपन्नता का शिखर था। वह सोच रहा था चांद के बारे में, सितारों के बारे में, रात के बारे में और आकाश के बारे में और वह बिलकुल भूल ही गया स्वयं को। बर्फ गिरने लगी और सुबह तक करीब-करीब मरा हुआ ही पाया गया, उसका आधा शरीर बर्फ से ढका हआ था, जमा हआ था, और अब तक वह देख रहा था आकाश की ही तरफ। वह जिंदा था, पर ठंड के मारे जम गया था। लोग आए थे खोजने को कि वह कहां चला गया, और उन्होंने उसे पाया खड़े हुए। सारी रात वह वृक्ष के नीचे खड़ा रहा था। जब उन्होंने पूछा, 'तुम घर वापस क्यों नहीं लौटे? -और बर्फ गिर रही है और मर सकता है व्यक्ति ।' वह बोला, 'मैं तो बिलकुल भूल ही गया था इसे बारे में। मेरे लिए तो यह गिरी ही नहीं। मेरे लिए तो समय गुजरा ही नहीं। मैं रात के सौंदर्य में, और सितारों में और अस्तित्व की सुसंबद्धता में और ब्रह्मांड में ही इतना
डूबा हुआ था।'
तर्क सदा घुलमिल जाता है सुव्यवस्था के साथ, उस समस्वरता के साथ जो ब्रह्मांड में अस्तित्व रखती है। तर्क विषय के चारों ओर घूमता रहता है। वह उसके ही चारों तरफ और इधर-उधर और आसपास चक्कर लगाता रहता है। सारी ऊर्जा विषय दवारा ले ली जाती है। यह तर्कमय समाधि होती है सवितर्क, पर विषय तो होता ही है वहां। वैज्ञानिक, बौदधिक, दार्शनिक मन प्राप्त करता है इसे।