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कर रही होती है। वे साथ-साथ उदित होती हैं। साथ-साथ होता है शिष्य और गुरु का विकास, लेकिन ऐसा बहुत ज्यादा हो जाएगा तुम्हारे लिए।
जब मैं खोज रहा था अपनी संबोधि को, तो तुम खोज रहे थे तुम्हारे शिष्यत्व को। संपूर्ण द्वारा अपनी परिपूर्ति के लिए साथ -साथ स्थिति का निर्माण किए बिना कुछ नहीं घट सकता। हर चीज जुड़ी है। वह इतने गहरे रूप से जुड़ी हुई होती है कि व्यक्ति निश्चित हो सकता है, कोई जरूरत नहीं है फिक्र लेने की। यदि तुम्हारी अंतर्भभीप्सा सचमुच ही जाग चुकी है तो तुम्हें गुरु को खोजने जाने की भी जरूरत नहीं, गुरु को आना ही होगा तुम तक। या तो शिष्य जाता है या गुरु आता है।
मोहम्मद ने कहां है, 'यदि पहाड़ नहीं आ सकता है मोहम्मद तक, तो मोहम्मद को जाना होगा पहाड़ तक।' पर मिलन होना ही है, यह नियत है।
कुरान में ऐसा कहां है कि एक फकीर को, संन्यासी को, उस व्यक्ति को जिसने तज दिया संसार, उसे नहीं जाना चाहिए राजाओं के, सत्ताशालियो के, धनपतियों के महलों में। लेकिन ऐसा ह कि महान सूफियों में से एक जलालुद्दीन रूमी आया करता था सम्राट के महल में। संशय उठ खड़ा हुआ। लोग इकट्ठे हुए और वे कहने लगे, 'यह तो ठीक नहीं, और तुम एक बुद्ध-पुरुष हो। क्यों तुम जाते हो सम्राट के महल में, और जब कि कुरान में लिखा है कि तुम्हें नहीं जाना चाहिए।' और मुसलमान तो बिलकुल आसक्त होते हैं कुरान पर। किसी पुस्तक द्वारा इतने आविष्ट हुए तुम कोई दूसरे लोग नहीं ढूंढ सकते।' ऐसा लिखा है कुरान में कि यह गलत है। तुम मुसलमान नहीं? क्या उत्तर दोगे तुम? कौन-सा उत्तर है तुम्हारे पास? कुरान में कहां है कि जिस आदमी ने दुनिया को छोड़ दिया हो उसे उन लोगों के यहां नहीं जाना चाहिए जो कि धनवान होते हैं और सत्ताशाली होते हैं। यदि वे लोग चाहते हैं, तो उन्हें आना चाहिए।'
जलालददीन हंस दिया और वह बोला, 'यदि तुम समझ सको तो यह है मेरा उत्तर: चाहे मैं महल में
या राजा के पास,या कि राजा आए मेरे पास, जो कछ भी घटे, सदा राजा ही आता है मेरे पास।
मैं चला भी जाता हं महल में, तो भी वह राजा ही है जो कि आता है मेरे पास। यह है मेरा उत्तर। यदि तुम समझ सकते हो, तो समझ लो। अन्यथा, भूल जाओ इसके बारे में। मैं यहां कुरान का अनुसरण करने के लिए नहीं हैं, लेकिन मैं कहता हं तुमसे कि जो कुछ भी हो वस्तुस्थिति, चाहे रूमी जाता हो हल तक या राजा आता हो रूमी तक, सदा राजा ही आता है रूमी के पास, क्योंकि वह प्यासा होता है, और मैं हूं वह पानी जो कि बुझा सकता है उसकी प्यास।' और फिर बोला, 'कई बार ऐसा होता है कि रोगी इतना बीमार होता है कि डाक्टर को जाना पड़ता है। और निस्संदेह राजा बहुत-बहुत बीमार होते हैं करीब-करीब अपनी मृत्युशय्या पर ही पड़े होते हैं।'
यदि तुम नहीं आ सकते, तो मैं आऊंगा तुम्हारे पास, लेकिन ऐसा होगा ही। इससे बचा नहीं जा सकता। क्योंकि हम दोनों विकसित होते रहे हैं साथ-साथ, एक सूक्ष्म छिपी हुई समस्वरता में। जब