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इस बात ने एक गहरी समस्या खड़ी कर दी है धार्मिक व्यक्तियों के लिए, क्योंकि जीसस जीसस हैं और बिलकुल दिखायी नहीं पड़ते बुद्ध की भांति। बुद्ध बुद्ध हैं और कृष्ण की भांति बिलकुल नहीं लगते। जो लोग कृष्ण से प्रभावित हैं वे सोचेंगे कि बुद्ध में किसी तरह की कमी है। जो लोग बुद्ध से प्रभावित हैं वे सदा सोचेंगे कि कृष्ण कुछ न कुछ गलत हैं। क्योंकि तब तुम्हारे पास एक आदर्श होता है और तम निर्णय बनाते हो उस आदर्श दवारा, और बदध-पुरुष तो बस व्यक्ति होते हैं। तुम कोई मापदंड नहीं बना सकते, तुम उन्हें किन्हीं आदर्श स्वरूपों द्वारा नहीं जांच सकते। वहां कोई आदर्श अस्तित्व नहीं रखता। उनके पास, उनके भीतर एक समान तत्व होता है; वह है भगवत्ता, जो है संपूर्ण ब्रह्म के लिए एक माध्यम बनना, लेकिन बस इतना ही। वे अपने अलग-अलग गान गाते हैं।
यदि इसे तुम याद रख सको, तो ज्यादा सक्षम हो जाओगे, विकास की उस उच्चतम पराकाष्ठा को समझने में जो कि एक बुद्ध-पुरुष होता है। और मत रखना किसी चीज की अपेक्षा उससे; वह कुछ नहीं कर सकता है। वह बस वैसा होता है। मुक्त और सहज स्वाभाविक होकर वह जीता है अपने अस्तित्व को। यदि तुम कोई घनिष्ठ नाता अनुभव करते हो उसके साथ, तो बढ़ जाना उसकी तरफ और उत्सव मनाना उसके अस्तित्व के साथ; साथ हो लेना उसके। यदि तुम कोई घनिष्ठता अनुभव नहीं करते तो कोई विरोध नहीं बनाना। तो बस चले ही जाना किसी दसरी जगह। कहीं किसी जगह कोई जरूर अस्तित्व रखता होगा तुम्हारे लिए। किसी और के साथ तुम तालमेल अनुभव करोगे।
तो मत परवाह करो यदि तुम मोहम्मद के साथ तालमेल अनुभव नहीं करते हो। क्यों खड़ी करनी अनावश्यक चिंताएं? मोहम्मद को मोहम्मद ही रहने दो और उन्हें करने दो अपना काम। तुम उसके बारे में मत करो चिंता। यदि तुम बुद्ध के साथ तालमेल जुड़ा अनुभव करते हो, तो बुद्ध हैं तुम्हारे लिए; सारे विचार गिरा देना। यदि तुम मेरे साथ तालमेल अनुभव करते हो, तो केवल मैं ही एक बुद्ध-पुरुष होता हूं तुम्हारे लिए। बुद्ध, महावीर, कृष्ण-फेंक दो उन्हें रही की टोकरी में। यदि तुम मेरे साथ तालमेल अनुभव नहीं करते तो मुझे फेंक देना रही की टोकरी में और चलते चलना अपने स्वभाव के अनुसार। कहीं -न-कहीं, कोई गुरु अस्तित्व रख रहा होता है तुम्हारे लिए। जब कोई प्यासा होता है तो पानी अस्तित्व रखता है। जब कोई भूखा होता है तो भोजन अस्तित्व रखता है। जब किसी में गहन प्यास होती है प्रेम की, तो प्रिय अस्तित्व रखता है। जब आध्यात्मिक अभीप्सा जगती है-वह वास्तव में उठ ही नहीं सकती यदि ऐसा कोई व्यक्ति न हो जो कि उसे पूरा कर सकता हो।
यही है गहन समस्वरता, ऋतम्भरा। यही है छिपी हुई समस्वरता। असल में तो -यदि तुम मुझे इसे कहने दो, क्योंकि यह बेतुका मालूम पड़ेगा -यदि कोई बुद्ध-पुरुष मौजूद न हो, जो कि तुम्हारी अभीप्सा। को परिपूरित कर सकता हो तो वह आकांक्षा, अभीप्सा पहुंच ही नहीं सकती है तुम तक। क्योंकि संपूर्ण ब्रह्मांड एक है एक हिस्से में आकांक्षा जगती है, तो कहीं दूसरे हिस्से में परिपूर्ति प्रतीक्षा