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की भांति हूं और यदि तुम मेरा गान समझ लेते हो तो तुम यहां होते हो ठीक कारण से। यदि तुम समझ लेते हो मेरी लय, तो तुम यहां होते हो ठीक कारण से। यदि तुम 'मुझे' समझते हो, जो मैं कहता हं उसे नहीं, बल्कि मेरी उपस्थिति को समझते हो, केवल तभी ठीक है यहां होना, वरना नहीं।
संसार बड़ा है, यहां क्यों अटकना! और सदा ध्यान रहे, यदि यहां किसी ढंग से तुम गलत कारणों से हो, तो तुम सदा फंसा हुआ अनुभव करोगे। जैसे कि कुछ ऐसा घट गया हो, जिसे नहीं घटना चाहिए था। तुम सदा बेचैनी अनुभव करोगे। मैं तुम्हारे लिए सुख-चैन नहीं होऊंगा। मैं एक कारा बन जाऊंगा। और मैं नहीं चाहूंगा किसी के लिए कारा बनना। यदि मैं तुम्हें कुछ दे सकता हूं यदि कुछ ऐसा है जो कि महत्व का है तो वह है स्वतंत्रता। इसीलिए मैं कहता हूं, 'प्रयोजनवश'। लेकिन गलत मत समझ लेना मुझे, यह कुछ ऐसा नहीं जिसे मैं कर रहा हूं मैं इस ढंग से हूं ही। यदि मैं चाहूं भी तो इसे बंद नहीं कर सकता, और कृष्णमूर्ति ऐसा नहीं कर सकते, वे चाहें भी तो। वे अपने ढंग से खिले हुए हैं, मैं अपने ढंग से खिला हुआ हूं। ऐसा हुआ एक बार कि एक संदेश मिला एक मित्र द्वारा, जो कि मेरे मित्र हैं और कृष्णमूर्ति के भी मित्र हैं। संदेश पहुंचा कृष्णमूर्ति की ओर से कि वे मुझसे मिलना चाहेंगे। मैंने कहां उस संदेशवाहक से कि यह तो बिलकुल ही बेतुकी बात हो जाएगी। हम अलग – अलग दो छोर हैं। या तो हम मौनपूर्वक बैठ सकते हैं, और वह ठीक होगा, या फिर हम बहस किए जा सकते हैं अनंतकाल तक बिना किसी निष्कर्ष तक पहुंचे हुए। ऐसा नहीं है कि हम एक दूसरे के विरुद्ध हैं, हम तो बस विभिन्न हैं। और मैं कहता हूं कृष्णमूर्ति उन महानतम बुद्ध-पुरुषों में से एक हैं जो आज तक हुए हैं। उनकी एक अपनी अद्वितीयता है।
यह बात बहुत गहरे रूप से समझ लेनी है। ऐसा थोड़ा कठिन होगा। अबुद्ध पुरुष तो लगभग सदा एक से ही होते हैं। कोई ज्यादा अंतर नहीं होता है, हो नहीं सकता। अंधकार उन्हें एक जैसा बना देता है, अज्ञान उन्हें बना देता है लगभग एक जैसा ही। वे एक दूसरे की नकल होते हैं और तुम मौलिक को नहीं पा सकते। सभी कार्बन -कॉपी होते हैं, प्रतिकति होते हैं। अज्ञान में लोग कछ ज्यादा अलग नहीं होते। वे हो नहीं सकते। अज्ञान है उस काले कंबल की भांति जो कि ढांक लेता है सभी को। अंतर क्या होते हैं? मात्रा के अंतर हो सकते हैं, लेकिन अदवितीयता में अंतर नहीं होते। साधारणतया, अज्ञानी व्यक्ति बने रहते हैं सामान्य भीड़ की भांति। एक बार कोई व्यक्ति संबोधि को उपलब्ध हो जाता है तो वह संपूर्ण रूप से बेजोड़ हो जाता है। तब तुम उसकी तरह का कोई दूसरा नहीं खोज सकते, इतिहास के इस क्षण में भी नहीं, न ही फिर कभी। अतीत में नहीं, भविष्य में नहीं। फिर कभी न होगा कृष्णमूर्ति की तरह का आदमी, और कभी था भी नहीं। मैं फिर से दोहराया नहीं जाऊंगा। बुद्ध बुद्ध हैं, महावीर हैं महावीर -अद्वितीय ढंग की खिलावटें। बुद्ध –पुरुष होते हैं पर्वतशिखरों की भांति।