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लेकिन शिक्षक हैं। वे चाहेंगे तुम चिपके रहो उनसे और वे चिपके रहेंगे तुमसे वे ऐसी स्थिति बना देंगे जिसमें से यदि तुम भागे तो सदा तुम अपराधी अनुभव करोगे। गुरु के पास एक वातावरण होता है उसके चारों ओर, यदि तुम रहते हो उसमें तो तुम रहते हो तुम्हारे अपने निर्णय द्वारा । यदि तुम चले जाते हो, तो तुम चले जाते हो अपने निर्णय द्वारा। और जब तुम जाते हो, तो गुरु नहीं चाहेगा कि तुम अपराधी अनुभव करो इस बारे में, तो वह ऐसा रंग-रूप दे देता है स्थिति को कि तुम अनुभव करते हो, 'यह गुरु तो गुरु नहीं, या कि 'यह गुरु हमारे लिए नहीं' या कि 'वह इतना विरोधात्मक है कि वह बेतुका है। वह तुम्हारे लिए सारी जिम्मेदारी उठा लेता है। अपराधी अनुभव मत करो। तुम बस चले जाओ उससे दूर, पूरी तरह स्पष्ट होकर और उससे कट कर ।
इसीलिए मैं विरोधात्मक हूं। और जब मैं कहता हूं 'प्रयोजनवश', इसका यह अर्थ नहीं होता कि मैं कर रहा हूं वैसा, बस मैं वैसा हूं ही लेकिन प्रयोजनवश का अर्थ होता है, और वह अर्थ है मैं नहीं चाहूंगा कि जब कभी तुम मुझे छोड़ो तो तुम उसके बारे में अपराधी अनुभव करो मैं सारी जिम्मेदारी ले लेना चाहूंगा। मैं चाहूंगा कि तुम अनुभव करो, यह आदमी गलत है, और इसलिए तुम छोड़कर जा रहे हो इसलिए नहीं कि तुम गलत हो, क्योंकि यदि वैसी अनुभूति तुम्हारे अस्तित्व में चली जाती है कि तुम गलत हो और ऐसा अच्छा नहीं, तो फिर ध्वंसात्मक हो जाएगी बात, तुम्हारे भीतर एक ध्वंसात्मक बीज पड़ जाएगा।
गुरु कभी तुम पर कब्जा नहीं करता। तुम उसके साथ हो सकते हो, तुम दूर जा सकते हो, लेकि उसमें कोई मालकियत नहीं होती। उसके साथ होने की या दूर चले जाने की वह तुम्हें पूर्ण स्वतंत्रता देता है। यही होता है मेरा मतलब, जब मैं कहता हूं कि यदि तुम यहां हो, तो उत्सव मनाओ मेरे साथ | जो कुछ मैं हूं, उसे बांटो मेरे साथ लेकिन यदि किसी निश्चित घड़ी में तुम अनुभव करते हो दूर चले की बात, तो तुम्हारी पीठ फेर लेना और फिर कभी मत देखना मेरी तरफ, और मत सोचना मेरे बारे में, और मत अनुभव करना अपराधी ।
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गहरी समस्याएं जुड़ी होती हैं इस बात से । यदि तुम अपराधी अनुभव करते हो तो तुम दूर जा सकते हो मुझसे, किंतु अपराध संतुलित करने को ही तुम मेरे विरुद्ध बातें कहे जाओगे। अन्यथा कैसे तुम प्रभावहीन करोगे अपराध भाव को? तुम मेरी निंदा करते रहोगे जिसका मतलब, तुम चले गए और अभी तक गए भी नहीं निषेधात्मक रूप से तुम होते हो मेरे साथ और वह बात ज्यादा खतरनाक होती है। यदि तुम्हें मेरे साथ होना है, तो विधायक रूप से रहो मेरे साथ अन्यथा, बिलकुल भुला ही दो मुझे, 'यह आदमी अस्तित्व ही नहीं रखता।' क्यों निंदा करते जाना? लेकिन यदि तुम अपराधी अनुभव करते हो, तो तुम्हें लानी ही होगी व्याख्या । जब तुम अपराध - भाव अनुभव करते हो, और वह भ होता है, तब तुम मेरी निंदा करना चाहोगे। और निंदा करके तुम एक हल्कापन अनुभव करोगे, लेकिन तब निषेधात्मक रूप से तुम मेरे साथ बने रहोगे। मेरी छाया के साथ तुम चलोगे - फिरोगे। वह तो फिर तुम्हारे समय का और तुम्हारे जीवन का, तुम्हारी ऊर्जा का व्यर्थ हो जाना ही हुआ।