________________
रहोगे अपने में स्थिर, अपने से जुड़े हुए। तुम पाओगे एक निश्चित संगठित केंद्रीकरण; तुम नहीं रहोगे साधारण मनुष्य। तुम लगभग अतिमानव जान पड़ोगे, लेकिन तो भी तुम्हें फिर-फिर लौटना होगा। तुम जन्म लोगे, तुम्हारी मृत्यु होगी। आवागमन का चक्र थमेगा नहीं क्योंकि अ-विचार सूक्ष्म बीज की भांति ही होता है; बहुत सारे जन्म इसमें से चले आएंगे। बीज बहुत सूक्ष्म होता है, वृक्ष बड़ा होता है, लेकिन सारा वृक्ष छिपा है बीज में ही। राई का बीज हो सकता है बहुत-छोटा, लेकिन वह वृक्ष लिए रहता है अपने भीतर। वह भरा हुआ होता, उसका पूरा खाका लिए रहता है; वह सारे वृक्ष को ला सकता है। फिर और फिर, और फिर। और एक बीज से लाखों बीज आ सकते हैं; एक छोटा-सा राई का बीज सारी पृथ्वी को भर सकता है पेड़पौधों से।
अ-विचार सूक्ष्मतम बीज होता है। और यदि तुम्हारे पास होता है वह, तो पतंजलि कहते हैं इसे 'बीज सहित समाधि, सबीज समाधि।' तुम आना जारी रखोगे, चक्र चलना जारी रहेगा-जन्म और मृत्यु, जन्म और मृत्यु। यह बात दोहराई जाती रहेगी। अभी तक तुमने बीज जलाए नहीं हैं।
यदि तुम जला सकते हो अ-विचार के इस विचार को, यदि तुम अनात्म के इस विचार को जला सकते हो, यदि तुम न-अहंकार के इस विचार को जला सकते हो केवल तभी निर्बीज समाधि घटती है, बिना बीज की समाधि। तब कोई जन्म नहीं होता, कोई मृत्यु नहीं होती। तुम संपूर्ण चक्र के ही बाहर हो जाते हो, तुम उसके पार चले जाते हो। अब तुम होते हो विशुद्ध चेतना। द्वैत गिर चुका; तुम एक हो चुके। यह एकमयता, द्वैत का यह गिरना ही होता है मृत्यु और जीवन का गिर जाना। सारा चक्र अकस्मात थम जाता है-तुम दुःखस्वप्न के बाहर हो जाते हो। अब हम इन सूत्रों में प्रवेश करेंगे। वे बहुत-बहुत सुंदर हैं। उन्हें समझने की कोशिश करना। गहरा है उनका अर्थ। तुम बहुत-बहुत सजग होना उस सूक्ष्म अर्थ- भेद को समझने के लिए।
ये समाधियां जो फलित होती हैं किसी विषय पर ध्यान करने से वे सबीज समाधियां हैं और आवागमन के चक्र से मुक्त नहीं करती।
'ये समाधियां जो फलित होती हैं किसी विषय पर ध्यान करने से...।'
तुम ध्यान कर सकते हो किसी विषय पर, वह पौगलिक हो या कि आध्यात्मिक। वह विषय धन हो, या कि वह विषय मोक्ष हो, उस अंतिम उपलब्धि का विषय; कोई पत्थर हो सकता है या कोहिनूर हीरा हो सकता है विषय; इससे कुछ भेद नहीं पड़ता। यदि विषय वहां होता है, तो मन वहां होता है; और विषय होता है, तो मन जारी रहता है। मन की निरंतरता होती है विषय दवारा। दूसरे के दवारा, मन